जैसी संगत होगी वैसा होगा मनुष्य का स्वभाव – शंकराचार्य

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भिण्ड(पवन शर्मा)। अटेर रोड रेल्वे क्रोसिंग के पास स्थित स्वरूप विद्या निकेतन स्कूल परिसर में श्रीराम कथा के पहले दिन काशी धर्मपीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज ने रामकथा का वर्णन करते हुए कहा कि

श्रीराम कथा सबसे पहले शंकर भगवान ने पार्वती जी को सुनाई थी। उसके बाद महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की। लेकिन वाल्मीकि रामायण को केवल विद्वान लोग ही समझ सकते हैं। ऐसे में गोस्वामी तुलसीदास ने सरल भाषा मे रामचरित मानस की रचना की।


उन्होंने कहा वाल्मीकि रामायण में महर्षि वाल्मीकि ने अपने प्रारंभिक चरित्र का वर्णन किया जिसमें कुसंगति में पड़कर वह अधर्म के रास्ते पर चलने लगे। उनके अंदर तो ज्ञान का भंडार था लेकिन केवल कुसंगत के कारण ही वह यहां तक पहुंच गए कि जंगल के रास्ते से गुजर रहे सप्तर्षियों को ही लूटने लगे।

जिसके बाद जब नारद जी ने कहा कि जो पाप तुम कर रहे हो घर वालों से पूछो क्या वह तुम्हारे पाप के भागी बनेंगे। जब घर के सदस्यों ने कहा कि उनका भरण पोषण करना जिम्मेदारी है लेकिन पाप के भागी वह नहीं बनेंगे। जिसके बाद वाल्मीकि की आंखें खुल गईं और वहीं से उनका हृदय परिवर्तन हो गया।


शंकराचार्य जी ने कहा कि जीवन मे प्रेम जरूरी है। प्रेम के बिना ज्ञान भी अधूरा है। रामायण में प्रेम का वर्णन किया गया है। प्रेम से रहने की सीख रामायण में दी गई है।


रामकथा से पूर्व भक्तों द्वारा शंकराचार्य जी का पादुका पूजन किया गया। जबकि सुबह के समय शिष्यों द्वारा शंकराचार्य जी का पूजन अर्चन कर

आशीर्वाद लिया गया। श्रीराम कथा का आयोजन श्रीकाशी धर्मपीठ के तत्वावधान में सभी भक्तों के सहयोग से नारायण सेवा समिति भिण्ड के द्वारा कराया जा रहा है।

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