कविता:सुनहरा दिवस

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सुनहरा दिवस

सदियों का संघर्ष हमारा
आज फलित हो पाया है
जहां राम ने जन्म लिया था
मंदिर वहीं बनाया है।
अगणित साधु -संतो ने
वीरों ने जीवन होम दिया
रामकाज हित सर्वस अर्पण
एक नहीं कई बार किया
तभी सुनहरे आखर में
इतिहास नया लिख पाया है
जहां राम ने जन्म लिया था
मंदिर वहीं बनाया है।
कितने युद्ध लड़े हैं हमने
इस शुभ दिन को पाने को
कितनों ने निज प्राण गंवाए
मंदिर वहीं बनाने को
अब खुशियों के दीप जलाओ
लौट राम घर आया है
जहां राम ने जन्म लिया था
मंदिर वहीं बनाया है।
वर्गभेद और जाति -पांति से
ऊपर उठ संग्राम किया
जनमानस ने कोर्ट -कचहरी
मिलकर झण्डा थाम लिया
अवधपति का अवध धाम में
तब मंदिर बन पाया है
जहां राम ने जन्म लिया था
मंदिर वहीं बनाया है।
सौ-सौ बार नमन करता हूं
उन बलिदानी वीरों को
नमन करूं उन गुणीजनों की
उन अकाट्य तकरीरों को
जिनके बूते षड़यंत्रों को
हमने धूर मिलाया है
जहां राम ने जन्म लिया था
मंदिर वहीं बनाया है।

अखिल कोटि ब्रह्माण्ड रचयिता
राम जगत के नायक हैं
भक्तजनों और दीनजनों
निर्बल के सदा सहायक हैं
अवधपुरी के तो कण-कण में
मेरा राम समाया है
जहां राम ने जन्म लिया था
मंदिर वहीं बनाया है।
जाग गया है अब तो भारत
अब ना रुकने वाला है
जगतगुरु का गत गौरव फिर
हासिल करने वाला है
कहो गर्व से हम हिन्दू हैं
दिवस सुनहरा आया है
जहां राम ने जन्म लिया था
मंदिर वहीं बनाया है।

        रचनाकार

प्रभु दयाल शर्मा राष्ट्रवादी
करैरा

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