करवा चौथ स्पेशल : कविता-कक्को करवा चौथ उपासीं
करवा चौथ उपासी रहनें
जौई सोच खैं मन में ,
कौनऊं विपदा ना आ पावै
कक्का के जीवन में ,
एक दिनां पहलें लै आईं
पूजा कौ सामान ,
कक्काजू सौ साल जिएं
और सुखी रखें भगवान ,
चलनी और माटी कौ करवा
रोरी और सिंदूर ,
दूध दही गंगाजल के संग
दीपक और कपूर ,
लाल रंग की धोती पहरी
चुरियां बिछिया बेंदी ,
पांवन में रच लऔ महावर
और हाथन में मेहंदी ,
अन्न सें ना भेरौ भऔ निठुअंई
दिन भर रहीं प्यासीं ,
कक्को करवा चौथ उपासीं I
पहलां पहल परौ जौ मौका
फूली नहीं समानीं ,
दिनभर निराहार रहनें तौ
ना रोटी ना पानी ,
हौसफूल में कढ़ी दुपहरिया
सजवे और संवरवे में ,
संजा बिरिया हो गई
पूजा की तैयारी करवे में ,
ज्यों ज्यों होय अंधेरों
त्यों त्यों कक्को कौ मन डोलै ,
जानें कबै निकरवै चंदा
कबै उपास खौं खोलैं ,
रह रह खैं चढ़ जाएं छत्त पै
लौट आएं फिर नीचें ,
पेट पकर खैं बैठ जाएं
हाथन सें आंखें मीचें ,
भूख के मारें प्राण निकरवें
हो हो जाएं रुआंसीं ,
कक्को करवा चौथ उपासीं I
जैसेंई कढ़ौ चंद्रमा
कक्को लएं पूजा की थारी ,
कक्काजू आ गए छत्त पै
पहरें सूट सफारी ,
चरण छुए कक्काजू के
और आरती लई उतार ,
चंदा देख चलईं सें
कक्का कौ मुख रहीं निहार ,
पानी पिया दऔ कक्को खौं
दीनहीं खबा मिठाई ,
करवा चौथ उपासी रह खैं
फूली नहीं समाईं ,
तीज त्यौहार हैं बंद बंद के
ऐसौ भारत देश ,
करवा चौथ अमर होवै
हे गौरी पुत्र गणेश ,
कक्का कक्को जुग जुग जीवें
शिव शंकर कैलाशी ,
कक्को करवा चौथ उपासीं ।
प्रमोद गुप्ता ‘भारती’ करैरा
साहित्यकार
मोबाइल 9425489922