बापू के नाम साहित्यकार का पत्र

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क्या करोगे यहां आकर बापू ?


पूजनीय बापू,
सादर प्रणाम।
बापू आपके सपनों का भारत वैसा नहीं बन सका जैसा आप सोचते थे, इस बात का हमें कम और उन्हें ज्यादा खेद रहता है जिनके कन्धों पर देश ढोया जा रहा है ।
बापू आप सदैव याद आते रहते हो हमें किन्तु जिन्हें रोज याद आना चाहिए अथवा यों कहें कि उन्हें रोज हर पल हर क्षण आपको याद रखना चाहिए वह तो केवल दो अक्टूबर को आपको याद करके जल्दबाजी में प्रार्थना सभा कराकर साल भर की छुट्टी पा लेते हैं।
सच तो यह भी है कि अब यहां का मौसम और माहौल आपको याद करने काबिल भी नहीं रहा।
इस देश ने आपके त्याग और बलिदान के फलस्वरूप आपको राष्ट्रपिता के रूप में स्वीकार किया था और पूरा राष्ट्र आपको राष्ट्रपिता के रूप में आज भी देख रहा है किन्तु कुछ तथाकथित नेता ,विचारक ,समीक्षक आपकी इस उपाधि से खिन्न से रहते हैं कुछ तो यहां तक कह गये कि आपसे राष्ट्रपिता संबोधन छीन लिया जाय किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली हां इतना जरूर हुआ कि कुछ दिनों तक चर्चाओं में छाए रहे और बाद में कहां तमस के अंतस में समा गये पता नहीं चला।
यह बात सुनकर आप दुखी नहीं हुए होंगे क्योंकि आपको तो हमेशा ही बच्चों की गलतियां माफ़ करने की आदत रही है, बच्चों से गलतियां हो ही जाती हैं।
आजकल लोग चर्चा में बने रहने के लिए ही उल्टी सीधी बयानबाजी करते रहते हैं और अपने उद्देश्य में सफल भी हो जाते हैं।
अभिव्यक्ति की आजादी का सहारा लेकर किसी ने कह दिया कि भारत माता की जय नहीं बोलेंगे …बस फिर क्या था सारे देश में उसके पुतले जलाए गए,किसी ने किसी को नीच कह दिया सारे देश में उसके भी पुतले जलने लगे ।
पुतले जलने की परंपरा से एक नये रोजगार का सृजन जरूर हुआ है पुतले जलाने से एक ओर पुतले बनाने बालों को रोजगार मिला तो वहीं दूसरी ओर जिनके पुतले जलाए गए वह रातों-रात प्रसिद्ध हो गये ।
कितने ही नेता तो उल्टा सीधा बककर आज राष्ट्रीय स्तर पर छा गए हैं बड़ी बड़ी सभाओं को बाकायदा मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करने लगे हैं।
बापू, आजकल छोटी छोटी बातें भी बहुत बड़े मुद्दे के रूप में छा जाती हैं और लोगों की कुर्सियों को हवा में उड़ा कर ले जाती हैं।
बापू हमने सुना है कि आपने नमक आंदोलन चलाया था और स्वदेशी वस्त्रों में खादी को एक अलग स्थान दिया था—-बापू आपके सामने खादी को कितना महत्व मिला था कितना महत्व था कितनी इज्जत थी,आपकी खादी से गोरे थर-थर कांपते थे दहसत खाते थे खादी से—–किन्तु बापू आपसे क्या छुपाना यहां अब खादी की हालत ठीक नहीं है आपके सपनों के भारत में खादी पहनने बालों ने अपने ही आचरण से खादी को बदनाम कर दिया है उनकी हालत और आज के हालात ठीक नहीं हैं बापू ।
अधिकांश खदरधारियों की नाक नक्श आम आदमी से एक दम भिन्न से हो जाते हैं।
यह बात सच है कि आपने अपने देश की आजादी की वेला में हजारों हजार सपने देखे होंगे एक अलग ही नक्शे का निर्माण किया होगा आपने, राजनीति और राजनेता की अलग ही तस्वीर रही होगी आपके जेहन में।
कैसा होगा हमारा आने वाले कल का भारत यह भी सपनों में सुमार रहा होगा किन्तु बापू, हमारा देश आजादी के सत्तर साल बाद भी पता नहीं क्यों पराधीन सा महसूस करता है।आजादी की बर्षगांठें मनाते जा रहे हैं और निराश्रितों और गरीबों की संख्या सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती जा रही है।
बापू इस देश में रेखाओं के नीचे ग़रीबी दबती चली जा रही है,रेखा के नीचे ग़रीबी दबी और दबती चली जा रही है और ग़रीबी रेखा से ऊपर वाले ग़रीबी रेखा से नीचे वालों के हक चाटने में लगे हुए हैं।
पूज्य बापू””””भारत का लोकतंत्र ठीक ठाक चल रहा है चुनाव हर पांच साल में होते हैं कभी कभी बीच में भी आ टपकते हैं उन्हें भी झेलना पड़ता है।
कभी मंदिर का मुद्दा कभी मस्जिद की बात कभी हवाला कभी संसद में तोपें दनदनाती हैं।
बापू अब तो संसद का सीधा प्रसारण होने लगा है बड़ी शर्म आती है तब जब बहस हो हल्ला और गाली-गलौज तक पहुंच जाती है । कभी माइक तोड़े गए कभी झुमाझटकी कर दी जाती है।
जो जनता बड़ी उम्मीद से चुनकर भेजती है वह ठगा सा महसूस करती है। चुनाव में खादी पहनकर वादे करना आम हो गया है बड़े बड़े सपने दिखाए जाते हैं ऐसा लगता है चुनाव के समय कि अब हमारे देश में रामराज्य आने वाला है पैर छुने का अच्छा हुनर आ गया है इन नेताओं में बापू ।
चुनाव में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है और पैसे की दम पर अच्छा खासा नेटवर्क तैयार कर लिया जाता है।
मंदिरों पर भंडारे होते हैं, गरीबों में कंबल बांटे जाने लगते हैं। शराब के नशे में डुबो दिये जाते निरीह प्राणी भोली-भाली जनता को ठगने के लिए ।
और बापू – जनता भी बड़ी परेशान रहती है चुनाव में किसे चुनें ।
अच्छों में से अच्छा चुनना हो तब तो ठीक है लेकिन यहां तो अब बुरे लोगों में से कुछ कम बुरे छांटना पड़ते हैं जो अत्यंत दुरूह काम हो जाता है ।
और फिर बापू यह तो विज्ञापन का युग है अच्छा विज्ञापन गोबर को हलुआ का मूल्य दिलाने में कामयाब हो जाता है और विज्ञापन के अभाव में अच्छा भला हलुआ पड़ा पड़ा सड़ जाता है।
बापू यहां पार्टियों के कार्यकर्ताओं की पहचान विभिन्न रंगों की तौलियों से होने लगी है भले ही रंग बिरंगे हो गये हैं किन्तु अंदर का रंग एक जैसा ही है।
बापू , इसमें कतई शक नहीं है कि सारा देश आपको बर्ष में एक बार जरूर याद करता है ,यह भी बहुत बड़ी बात है कि इक्कीसवीं सदी के इस व्यस्ततम माहौल में लोग इतना समय निकाल लेते है ।
आपकी जयंती मनाई जाती है ड्राई डे रखा जाता है, प्रार्थना सभायें होती हैं खूब भाषण होते हैं और फिर आयोजनों से थके हारे लोग खा पीकर सो जाते हैं ।
यहां चुनाव बहुत मंहगाई वाले हो गये हैं दस पचास लाख हों दस पच्चीस गाडियां हों सौ-दो सौ लठैत टाइप के पलैंत हों तो ही विचार कर पा रहे हैं लोग चुनाव लड़ने के लिए।
अब यहां आपकी अकेली लकुटिया से चमत्कार मुश्किल सा लगता है ।
अगला पत्र शीघ्र लिखूंगा ।

  • सतीश श्रीवास्तव
    मुंशी प्रेमचंद कालोनी करैरा
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