कथा:बंटवारा

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कथा:बंटवारा

बलिया में रहने वाले रामबाबू अपने छोटे से परिवार में सुखी थे।पत्नी के अलावा उनका बड़ा बेटा ठेकेदारी करता था वहीं छोटा भी घर घर जाकर ट्यूशन पढ़ाता था। ईश्वर की कृपा से धन दौलत की कोई कमी नहीं थी रामबाबू को। खुद रामबाबू भी अपने किराने की दुकान में ग्राहकों से घिरे रहते थे। और सम्मान भी बहुत था उनका। बड़े बेटे के विवाह के लिए पूरा परिवार अच्छी लड़की की तलाश में कमर कस के जुटा था। हालांकि बड़ा बेटा रमेश ज्यादा पढ़ा लिखा नही था, पर सभी घर वाले चाहते थे कि बड़ी बहू पढ़ी लिखी आए। एक रोज छोटे बेटे हरी ने एक वैवाहिक विज्ञापन में देखकर अपने पिता को बताया …..”लो देखो पापा……लगता है अपनी तलाश पूरी हुई….भाईसाहब के लिए ये लड़की कैसी रहेगी?”…..पिता के आगे हरी ने समाचार पत्र में छपा विज्ञापन रख दिया। “आप एक काम करो पापा मोबाइल पर नंबर में मिलाए देता हूं,….आप कर लीजिए बात।” हरी बहुत उत्साहित था। आखिरकार उसे भी रोज “भैया” कहने वाली भाभी मिल जायेगी। बात चल निकली और संबंध तय हो जाने पर ही खत्म हुई। सभी बहुत खुश थे, सभी रिश्तेदार घर पर आ चुके थे, हरी का उत्साह और खुशी देखे नहीं बनती थी। शादी के बाद कुछ महीने तक सब कुछ ठीक चल रहा था। पर धीरे धीरे पढ़ी लिखी बहू ने अपने रंग ढंग दिखाने शुरू कर दिए। हालांकि बहू सीमा खूबसूरत तो नही थी पर अपने आप को समझती बहुत खूबसूरत थी,अपने पिता के रामबाबू से ज्यादा अमीर होने का भी घमंड था। बार बार वो ससुराल वालों को ये एहसास भी दिलाती थी वो अच्छा खासा दहेज भी लाई है। अब बलिया उसे छोटा सा गांव लगने लगा। बार बार रमेश को बलिया छोड़ किसी और दूसरे बड़े शहर में ठेकेदारी करने की जिद करने लगी। रमेश भी अब अपनी पत्नी की सुनने लगा था,और उसे भी सीमा की बातों में दम नजर आने लगी थी। सभी घर वालों ने उनको समझाने की भरसक कोशिश की। मां ने सीमा को समझाते हुए कहा कि …..”बेटा बहुत अच्छा होता कि मैं अपने पोते का मुंह देख लेती….फिर चाहे तो तुम चली जाना”। सभी की कोशिश बेकार हो चुकी थी, रमेश को उसके साले ने कलकत्ता में एक बड़ा ठेका दिलवा दिया। चूंकि ठेका बड़ा था इसलिए सभी ने दोनो को भारी मन से जाने की हामी भर दी। जाते समय हरी भाई से गले मिल कर खूब रोया, आखिरकार दस साल छोटा भी तो था हरी, इसलिए बड़े भाई को बहुत मानता था।
समय धीरे धीरे आगे बढ़ता रहा। हरी की ट्यूशन क्लास भी बहुत अच्छी चलती थी,उसके पढ़ाए प्रतिभागी कई अच्छी नौकरियां प्राप्त कर चुके थे। रूढ़िवाद से परे हरी ने एक गैर जाति की लडकी से, प्रेम विवाह कर लिया। अब तो भाभी सीमा को कहने का और मौका मिल गया। लगातार वो अपने सास ससुर व रमेश के कान भरने लगी। रामबाबू और उनकी पत्नी भी इस विवाह से खुश नहीं थे, हरी ने बिना दहेज के, और वो भी गैर बिरादरी में विवाह जो किया था। कई सालों से घर न आने वाले भाई भाभी भी अचानक बलिया आ गए, चारों ने मिलकर हरी को फैसला सुना दिया।”देखो…..तुमने हम लोगों की मर्जी के बगैर एक गैर बिरादरी की लडकी से शादी कर ही ली है, तो अब हमे भी सोचना पड़ रहा है, हमे समाज और सम्मान की चिंता है, बिरादरी वाले हमे कोई लांछन लगाएं,इससे पहले तुम तुम घर से निकल जाओ,और बेहतरी तो इसी में है कि तुम बलिया छोड़ कर कहीं और चले जाओ।” हरी ने बहुत दलीलें दीं, भाई को विनती की पर किसी पर कोई असर नही हुआ। अपने भाई पर हरी को बहुत विश्वास था,उसने सोचा था कि मम्मी पापा बेशक उसका विरोध करें पर भाईसाहब सब संभाल लेंगे, बहुत प्रेम था उसे अपने बड़े भाई से। पर भाभी ने भाई पर ऐसा जादू किया था की बड़ा भाई तो बिलकुल भी सुनने को तैयार नहीं था। आखिरकार दुखी मन से हरी अपनी पत्नी सोनाली को लेकर पास के ही एक शहर में रहने लगा। जल्दी ही दोनो पति पत्नी ने अपनी ट्यूशन क्लास के जरिए अपनी पैठ बना ली। सोनाली बहुत दुखी होती थी, अपने आप को इन सब बातों का दोषी समझने लगी थी। इधर भाई भाभी ने रामबाबू और मां को सख्त हिदायत दे रखी थी कि चाहे जो हो जाए अब इन दोनो को घर में नही घुसने देना। हरी ने कई बार अपने मम्मी पापा से फोन पर बात करने की कोशिश की पर रामबाबू और मां फोन ही नहीं उठाते थे। रमेश और सीमा के इतने सालों बाद भी कोई संतान नहीं थी। शुरू के कुछ सालों तक तो सीमा ने ही मना कर दिया था कि वो अभी मां नहीं बनना चाहती क्योंकि मां बनने से उसकी सुंदरता पर बुरा प्रभाव जो पड़ता। अब ईश्वर ने भी उसे मां बनाने से मुंह मोड़ लिया।
हरी और सोनाली को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हो चुकी थी। रामबाबू ने वेशक हरी की सुध लेना छोड़ दी थी पर हरी अपने मम्मी पापा की सुध जैसे तैसे ले लेता था। दादा दादी बनने की खबर उन्हें पहुंचा दी थी, पर बड़े बेटे के कहने के कारण, चाहते हुए भी रामबाबू और मां ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
इधर हरी के बेटे होने की खबर से रमेश और सीमा परेशान हो गए। उन्हें लगा कि कन्ही पापा हरी को दुबारा घर न बुला लें, इसके चलते दोनो ने फ्लाइट पकड़ी और जल्दी ही बलिया जा पहुंचे। अब दोनो को डर था कि पापा कन्ही भावुक हो के हरी को अपनी संपत्ति का हिस्सेदार न बना लें इसलिए घर अपने नाम करवा लिया साथ ही कई और हिदायतें देकर चले गए। ठेके में घाटा होने की बात कह कर मोटी रकम भी अपने साथ ले गए।
एक दिन हरी को पता चला की पिता को पुलिस ने उठा लिया है और इल्जाम लगाया कि उसकी दुकान से ड्रग बरामद हुई है। दौड़ा भागा हरी बलिया के पुलिस स्टेशन पहुंचा तो पुलिस वालों ने उसे गाली देके भगा दिया। हरी को पूरा विश्वास था कि चाहे कुछ भी हो जाए उसके पापा ड्रग नही बेच सकते। वहां से सीधा घर पहुंच कर अपनी मां को संभाला, जिनका रो रो के बुरा हाल था। खबर आंधी की तरह पूरे बलिया और आसपास के इलाके में फैल चुकी थी। सभी रामबाबू को धिक्कार रहे थे। पुलिस ने रामबाबू को जेल भेज दिया खबर तो रमेश के पास भी पहुंच चुकी थी, पर उनकी बदनामी होगी तो उन्होंने अपनी मां को ये कह कर आ पाने में असमर्थता जाहिर की कि सीमा की तबीयत खराब है तो वो नहीं आ पाएगा इसलिए हरी को बुला लो। अपनी बदनामी से दूर हरी अपने पिता के साथ खड़ा था। जेल में मिलने के दौरान छूटते ही रामबाबू ने पूछा……”रमेश कहां है, वो क्यों नही आया”। सत्यता जानते हुए भी हरी ने पिता का मन रखने को बोल दिया कि….”वो भाभी की तबीयत खराब है न इसलिए नहीं आए।” पिता से सब वाकए का पता चला कि “एक दिन एक पुलिस वाले से उनकी कहासुनी हो गई थी, तब पुलिस वाला उन्हें देख लेने की धमकी दे के गया था, और उसके बाद उसे ड्रग केस में पकड़ लिया गया। सभी लोग रामबाबू के खिलाफ हो चुके थे, आंचलिक अखबार तरह तरह से कहानियां बना बना के खबरें छाप रहे थे। मां विक्षिप्त हो चुकी थी,पूरी तरह से होश हवास खो चुकी थी। हरी ने हार नहीं मानी और पापा को निर्दोष साबित करने के लिए एक अच्छा वकील कर लिया। पूरी तरह से आश्वस्त था हरी क्योंकि वकील ने भी बोल दिया था कि वो पिता को बचा लेंगे।लोगों के तानों से परेशान हो के , मां को अपने घर ले आया था हरी और बलिया वाले मकान में ताला डाल कर बंद कर दिया था।हरी ने भाई साहब को फोन लगाया तो भाभी ने फोन रिसीव किया और छूटते ही बोली “अरे क्या जरूरत थी पापा को ये करने की …..अरे डोकर डुकरिया को कितना पैसा लग रहा है ऐसा कि उन्हें ड्रग बेचने की नौबत आ गई।” “पर भाभी…..सुनो तो…..ऐसा कुछ भी नहीं,….जैसा आप सोच रही हो।” हरी ने बात काटते हुए कहा। “अरे ….क्या सुनो, शर्म नहीं आई….बुढ़ापे में ….ये सब करने की।….अच्छा हुआ जो हम इत्ती दूर चले आए। देखो हम पहले ही परेशान हैं, हमारी यहां इज्जत है, ऐसा तो है नहीं कि लोगों को पता नहीं चलेगा। ….बचने दो हमे, चैन से जी लेने दो।” लगातार बड़बड़ाते हुए भाभी ने फोन काट दिया।
मां की हालत दिन व दिन बदतर होती जा रही थी। पूरी तरह से पागलपन की शिकार हो चुकी थीं। इधर हरी की ट्यूशन क्लास भी प्रभावित होने लगी थी क्योंकि वो ठीक से समय ही नही दे पा रहा था उसका एक पैर यहां तो दूसरा पैर बलिया पिता से जेल में मिलने व वकीलों के चक्कर काटने में ही निकल रहा था। कक्षा नौ में पढ़ने वाले बेटे रवि ने भी स्कूल जाना बंद कर दिया था, क्योंकि उसके दोस्त उसे ड्रग माफिया का पोता कह कर चिढ़ाने लगे थे। घर में बूढ़ी दादी की हालत भी उससे देखी नहीं जाती थी,उसकी मां केवल दादी की तीमारदारी में ही लगी रहती थी। एक दिन मां न जाने कैसे घर से बाहर निकल गई और बदहवास सी सड़क पर दौड़ने लगी तभी एक कार ने मां में जोरदार टक्कर मार दी,जिससे मां की मौके पर ही मौत हो गई। हरी ने बड़े भाई को फोन लगाया तो भाई ने फिर बहाना बना दिया। “हरी तुम ऐसा करो कि… सबसे पहले तो कार वाले की रिपोर्ट करो, ताकि क्लेम लेने में दिक्कत न हो और देखो मैं करता हूं आने की कोशिश। भाभी तो अभी नहीं आ पाएगी क्योंकि कुछ दिनों से पेट में दर्द है तो डॉक्टर ने घूमने फिरने को मना किया है।” मुझे भी आने में समय लग जायेगा।अभी कोई फ्लाइट भी नहीं है और कलकत्ता से बलिया तक आने में कम से कम चौबीस घंटे तो लग ही जायेंगे। तो तुम ही उनका दाह संस्कार कर देना।” अब क्या बोलता हरी। सुनकर अवाक रह गया। खैर……पोस्टमार्टम के बाद लाश को लेकर घर आ गया था वहीं वकील से कहलवा कर पिता को कुछ घंटों के लिए जेल से छुड़ा लिया था, ताकि कम से कम वे मां की अन्येष्टि में शामिल हो सके। शमशान में भी सभी की निगाहें हथकड़ी में जकड़े और पुलिस से घिरे रामबाबू पर ही थी। दाह संस्कार होते ही रामबाबू ने हरी से पूछा” तूने भाई को खबर भी की या नहीं। वो आया क्यों नहीं”। “वो शायद परसों तक ही आ पाएं। ट्रेन से आयेंगे समय लगेगा। हो गई बात मेरी। और भाभी की भी तबीयत ठीक नहीं है ,तो शायद वे अकेले ही आयेंगे।” हरी ने जवाब दिया।
सब लोग जा चुके थे उठावनी पर कुछ ही रिश्तेदार आए थे। उठावनी हो जाने के बाद भाई साहब आ पाए। ट्रेन लेट थी उनकी। आते ही बोले”देखो हरी…. क्योंकि तुमने दाह संस्कार किया है तो अस्थि विसर्जन भी तुम्ही करोगे, तो तुम हरिद्वार चले जाना, मुझे जल्द से जल्द लौटना होगा क्योंकि तुम्हारी भाभी की तबीयत भी ठीक नहीं है और सुनो तेरहवीं पर भी ज्यादा टीम टाम मत करना, केवल ब्राम्हणों को खिला देना , बाकि साले किसी भी रिश्तेदार को न्योता देने की कोई जरूरत नहीं है। सब कमीने हैं।” वैसे मैं पूरी कोशिश करूंगा आने की।” “भाईसाहब आपको पापा याद कर रहे थे, बेहतर होता आप उनसे मिल जाते।” हरी ने रोते हुए कहा। “तू बोल देना उनको, बाद में मिल लूंगा उनसे।” “भाईसाहब कुछ पैसे दे जाते, केस में और इन सब कामों में मेरा बहुत खर्चा हो गया।”हरी ने भाई से विनती की।”अरे यार….कहां धरे हैं पैसे, काम बिल्कुल ठप्प पड़ा है।” दो टूक जवाब मिल चुका था हरी को।
वकील का फोन आया कि अब तुम क्रियाक्रम से निपट चुके हो तो ऑफिस में आ जाओ तुम्हारे पिता जी की पेशी होगी तो पैसे लगेंगे। तो देके जाओ।
हरी काफी परेशान रहने लगा। एकाएक उसके पूरे बाल सफेद हो गए। काफी कमजोर भी हो चुका था, पर हिम्मत नहीं हारी थी। उसे पूरा भरोसा था अपने ईश्वर पर कि वो जल्द ही पापा को छुड़ा लेगा। बेटा रवि बहुत दुखी रहने लगा था,उसका पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगता था,केवल एक ही चिंता सताती रहती थी कि जब भी वो स्कूल जायेगा उसके दोस्त उसे चिढ़ाएंगे। इस परेशानी का उसको एक ही उपाय सूझा। अपने कमरे में जाकर उसने फांसी लगाकर जान दे दी। नया पहाड़ टूट चुका था हरी और सोनाली पर। वो करता भी क्या। भाई को फोन करने का भी कोई फायदा नहीं था। हरी और सोनाली गले मिलकर फूट फूट कर रोते रहे। अब सोनाली भी बीमार रहने लगी। धीरे धीरे डिप्रेशन में चली गई।मनोचिकित्सक को दिखाने पर उसने जो दवाएं दी उससे वो रात दिन सोती ही रहती थी। पता नहीं कैसे भाईसाहब को इसका पता चल गया उन्होंने तत्काल हरी को फोन लगाया….”क्यों सोनाली की तबीयत खराब है और तूने बताया भी नहीं। खैर छोड़ वो सब दवाइयां बंद कर बस ये दवाएं शुरू कर। वॉट्सएप कर रहा हूं।” “पर भाईसाहब जब वहां भाभी का सिर और पेट दर्द सही नही हो पा रहा तो ये डिप्रेशन जैसी बीमारी कैसे दूर हो जायेगी। हो सके तो कुछ पैसे भेज दो तो मैं इसे बाहर दिखा लाऊंगा।” हरी ने भाई को बोला।
पैसे की सुनते ही भाई ने फोन काट दिया। रात दिन सोते रहने के कारण सोनाली कुछ खा पी भी नहीं पा रही थी। एक दिन वो भी हरी का साथ छोड़ गई। एक क्षण को हरी को लगा कि वो भी सोनाली के साथ अपनी जिंदगी त्याग दे,पर पिता का ख्याल आते ही इरादा बदलना पड़ा। अब हरी ने ट्यूशन भी कम कर दी। गुजारे लायक खर्चा चल सके केवल उतना ही कमाने लगा।
आखिरकार हरी की मेहनत और तपस्या रंग लाई।पिता को बरी कर दिया गया। इस खबर को सबसे पहले हरी ने भाई को दी। तो भाई ने कहा तू चिंता मत कर हम और भाभी दोनो आते हैं उनकी जमानत कराने। दोनो को डर था कि कहीं दोनो नहीं पहुंचे और अकेले हरी को देखकर पापा अपनी एफ डी और जो बैंक बैलेंस है उसे हरी को न दे दें। जेल के दरवाजे पर भाई भाभी और हरी खड़े थे। जैसे ही रामबाबू बाहर आए,भाई और भाभी ने लपक कर उनके पैर छुए। हमेशा बीमार रहने वाली सीमा तो चहकते हुई बोली “हमे तो पता था ये सब झूठा केस है,जिस दिन से आप जेल गए थे उसी दिन से हमारे भाई ने अखंड पाठ शुरू करा दिया था, और महराज ने गारंटी भी दी थी कि केस जीत जाओगे तुम लोग।”
भाई भाभी और पिता को बलिया छोड़ कर हरी अपने घर आ गया। चेहरे पर संतुष्टि थी पर दिल से पूरी तरह टूटा व दुखी था। सब कुछ तो खत्म हो गया उसका।
इधर रामबाबू ने बोल दिया कि वो यहां अब रहना नहीं चाहते। बाकि जीवन काशी में बिताएंगे। जो रकम वगैरह है वो तुम दोनो भाई आपस में बांट लेना। भाई ने जिस मकान को पहले ही अपने नाम करा चुके थे,उसे बेचने का विज्ञापन दे दिया। भाई और भाभी सारी रकम लेकर हरी के पास आकर बोले” बंटवारा कर लो। बोलो तुम्हे कितने पैसे चाहिए।” “बंटवारा……किस चीज का बंटवारा…. बंटवारा करते तो उन तकलीफों का करते जो चार साल से मेरे पास थीं। अब इस रकम का मैं क्या करूंगा भाई साहब।इसकी सबसे ज्यादा जरूरत तो आपको है। कोशिश करना कि अब कभी भाभी का सिर और पेट में दर्द न हो। आपका जो घाटा हुआ उसे पूरा कर लो। मेरा क्या , कौन है अब मेरे पास, शादी के बाद तुमने और पापा ने मुझे घर से बेदखल कर दिया था। बंटवारा तो तभी हो गया था, मेरे पास मेरा आत्मविश्वास था और तुम्हारे पास वो सब कुछ जिसकी मुझे आज कतई जरूरत नही है। आज संतुष्टि है मुझे कि मैंने सब कुछ खोकर भी अपना आत्मविश्वास नहीं खोया और आज पापा को बरी करा लिया और भाभी जो पाठ की बात आप कर रहीं थी न, यदि ऐसा ही होता तो कोर्ट कचहरी नही होते। केवल आपके ये महाराज और पाठ ही होते। ठीक है भाईसाहब अब आपको भी समय हो रहा होगा।आपकी फ्लाइट न चूक जाए।आपको आपके घर वापिस भी जाना है।” उठकर हरी ने भाई भाभी के पैर छुए और डबडबाई आंखों से देखते हुए हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।

एक प्रयास
डा0 बृजेश कुमार अग्रवाल
वार्ड no.7, डेनिडा रोड करेरा

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