कथा: माइक
” देखिए ….. आज की कथा में कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया जाएगा। सभी माता बहिनो से निवेदन है कि शांत भाव से कथा का आनंद लें।” भागवत कथा के पंडाल में सजे मंच से हाथ मे माइक लिए हुए एक व्यक्ति ने घोषणा की। …व्यास गद्दी पे विराजे शास्त्री जी ने भी कथा प्रारम्भ करने के लिए अपने संगीतज्ञों की तरफ इशारा किया। जैसे ही हारमोनियम पर साजदार ने सुर लगाया, तभी माइक से फिर एक आवाज आई…..समिति के
अध्यक्ष जहां कहीं भी हों ….आके महाराज जी को माला पहना के आशीर्वाद प्रदान करें।” तभी पीछे से लपक के माईक पकड़े आदमी को टोका … आशीर्वाद प्रदान नहीँ , बल्कि आशीर्वाद लें।कुछ भी उल्टा पुल्टा बोल रहे हो।…..हाँ हाँ ये जो कह रहे हैं वही करें…..महाराज को माला पहिना कर आशीर्वाद ले लें।” माल्यर्पण का काम खत्म होते ही फिर से शास्त्री जी ने कथा शुरू की। “बोलिये कृष्ण भगवान की जय”..
….जैसा कि आपको बताया गया कि आज का प्रसंग है कृष्ण की बाल रूप की लीलाएं। तो सुर दास जी बड़े सुलभ भाव से, बड़े ही प्रेम भाव से कहते है कि ……” देखिए…….. अपनी बात पूरी भी नही कर पाए शास्त्री जी कि तभी फिर माइक से एक घोषणा की जाने लगी।”देखिए….ये जो बच्चे मंच के सामने खेल रहे हैं उन्हें यहां से
हटा दें, वे कथा सुने इसमें संदेह है, वे इसी प्रकार दौड़ा भागी करते रहेंगे। आज बाल लीलाओं का वर्णन होगा इसका मतलब ये कतई नहीं कि बच्चे ऊधम करें।हटाएं इन्हें….आयोजक समिति के कार्यकर्ता तुरन्त हटाएं इन्हें।” इन सज्जन ने जैसे ही माइक रखा तुरन्त ही दूसरे व्यक्ति ने माइक उठा कर मोर्चा संभाल लिया। “देखिए…..जो माता बहने हैं वे अपने अपने बच्चों को सम्भाल लें, अन्यथा उनके बच्चों को कथा स्थल से बाहर किया जाएगा तो उन्हें बुरा लगेगा फिर बाद में मत कहना हाँ……।”
कथा फिर शुरू हुई “तो आपको बता रहा था कि सूर दास जी कहते हैं “बाल रूप में कृष्ण जी की लीलाएं देख कर माता बड़ी प्रसन्न हो रहीं हैं, मन ही मन मुस्कुरा रही हैं और पास खड़े नन्द बाबा को कह रहीं हैं कि “देखिए प्राणनाथ …..शास्त्री जी अपनी बात पूरी कह पाते कि माइक से फिर आवाज आई…..”देखिए………बड़े दुख की बात है कि कुछ लोग अपने साथ अपने
कुत्तों को भी ले आये हैं, ये अच्छी बात नहीं है ये कुत्ते दूसरों को देख देख के भोंक रहे हैं, ऐसा न हो किसी को काट लें, इसलिए जो भी अपने कुत्ते साथ लाये हैं वे उन्हें घर छोड़ के आएं ताकि उनके भोंकने से कथा में व्यवधान न हो।”
शास्त्री जी ने पुनः कथा प्रारम्भ की “बोलिये कृष्ण भगवान की जय, जैसा मैं बता रहा था कि माता यशोदा और नन्द बाबा दोनों बाल लीला देख मन्द मन्द मुस्का रहे थे यहां तक कि गांव की गोपियां और आस पड़ोस की लुगाई भी कृष्ण लीला को देख कर खुश हो रही हैं , एक गोपी खुश हो के दूसरे से कहती है… “एक जरुरी सूचना
…….प्रसंग पूरा हो पाता इससे पहले ही माइक से पुनः आवाज आने लगी……बाहर से पधारे सभी अतिथियों का कमेटी स्वागत करती है और सूचित करती है कि उनके भोजन की व्यवस्था मंच के पीछे की गई है, वे जाने से पहले भोजन ग्रहण करके ही जाएं।”
“हाँ तो गोपी ने अपनी सखी से कहा – शास्त्री जी ने कथा आगे बढ़ाई – “सुन सखी कल जो यशोदा को लला मेई माखन की मटकी चुरा के भज गयो मैं वासे कछु कह भी नई पाई, बस वाये देखत ई रई।”
“माखन रावत ….माखन रावत जहां भी हों तत्काल आ जाएं उनकी भैंस ने गोबर कर दिया है और बच्चे गोबर में पत्थर फेंक फेंक कर खेल रहे हैं।” माइक कहाँ शांत रहने वाला था।अब फिर से शाश्त्री जी बारी थी।
“पर आज मैं नई रुकवे वाली यशोदा से जाकी शिकायत जरूर करौंगी।” शास्त्री जी भी कथा को अनवरत जारी किए हुए थे। “और यशोदा ने मेई नई सुनी तों कान्हा ए पीटूंगी।”
अब माइक की फिर से बारी थी- “रामवती बाई जहां कहीं भी हों वे तुरंत घर चली जाएं, जल्दवाजी में वो अपने घर की जगह बाना बाई के घर पे ताला डाल आई हैं।”
“कृष्ण को माखन बहुत ही प्यारो थो वे घर को माखन तो चुपचाप खाते ई हते दूसरन के घरन में भी घुस जाते थे और खुद खाते अपने दोस्तों को खिलाते और बचे खुचे माखन को बानरों को खिला देते थे।” माइक के शांत होते ही शास्त्री जी ने कथा आगे बढ़ाई। ” ये सब देख के माता यशोदा और दूसरी लुगाइयाँ गुस्सा तो होती पर कान्हा की लीलाएं देख के खुश भी होतीं”। शास्त्री जी आगे बोलते इससे पहले माइक से फिर आवाज आई…..”देखिए…..ये बड़े दुख की बात है……कल किसी ने आरती में पंद्रह रुपये का नोट चढ़ाया था….देखिए ये बहुत बुरी बात है ….दस रुपये के आधे नोट में पांच का आधा नोट बड़ी सफाई से चिपका कर पन्द्रह रुपये का नोट बनाया था , और देखिए शर्म की बात ये है कि जब कथा बांचने वाले महाराज उस नोट को लेकर बीड़ी का बंडल लेने दुकान पे पहुंचे तो दुकानदार और महाराज में बड़ी तू तू मैं मैं हुई, ये बहुत गलत बात है….याद रखें ये महाराज हमारे यजमान हैं और इनका सम्मान करना हमारा परम् धरम है। तभी किसी ने फिर टोका .. अरे यजमान नहीं मेहमान हैं मेहमान। यजमान तो अपन हैं। ….हां तो मैं भी ये ही कह रहा था कि महाराज हमारे मेहमान हैं और उनका हमको सम्मान करना चाहिए। आगे से ध्यान रखें ऐसे नोट न चढ़ाएं।” माइक ठीक से शांत भी न हो पाया था कि तभी दूसरे व्यक्ति ने उसे सम्भाल लिया।”एक सूचना आज का प्रसाद वितरण रामू सटोरिये की तरफ से किया जाएगा और सभी भक्त गण लाइन में लग के परसाद ग्रहण करेंगे। देखिए ये परसाद है कोई खाना नहीं जो पेट भर सके इसलिए परसाद एक ही बार लें कुछ लोग मुँह पर रुमाल बांध के या महिलाएं घूंघट में आ के बार बार परसाद लेती हैं ये अच्छी बात नहीं है।” …..
माइक को शायद अब शांति नही मिलनी थी…..फिर से एक आवाज आई “एक जरूरी सूचना है…… महिलाएं इक्कठी हो के शौचालय न जाएं अभी कुछ महिलाएं गयीं थीं तो एक महिला को शौचालय के अंदर ही छोड आईं और तो और बाहर से दरवाजे की कुंडी भी लगा आईं। ऐसा न करें वो भीतर से जोर जोर से दरवाजा पीट रहीं थी और रो रहीं थी।” अब माइक शांत नहीं होने वाला था। आवाज फिर से आई…..”भोलू टेंट वाले जहां कहीँ भी हों तत्काल मंच पे आ जाएं महाराज जी के नीचे जो तखत लगा है उसका एक पाया शायद टूट गया है , महाराज जी अभी गिरई जाते।”
अब तो माइक की जैसे शामत ही थी ।पहले वाले व्यक्ति से माइक छीनते हुए एक अन्य सज्जन बोलने लगे… “समिति के सचिव बाबू लाल जहाँ भी हों वे मंच के पीछे आ जायें, उनकी मिसेस को चढ़ावे के लिए खुल्ले सिक्के चाहिए, क्योंकि उनके पास केवल एक पचास का नोट है। कल भी यही हुआ था उनने सोचा था कि वे महाराज जी के आगे पचास का नोट चढ़ा के वहाँ से खुल्ले उठा लेंगी पर महाराज जी ने सभी पैसे पहले ही उठा के जेब मे रख लिए थे और शर्म के मारे महाराज जी से मांग भी नहीं पाई थी तो पूरे पचास ही चढ़ाने पड़े।आज भी ऐसा न हो इसलिए उन्हें खुल्ले पैसों की व्यवस्था कर जाएं।”
कथा पूरी कब हुई ये तो पता नहीं पर माइक पूरे समय व्यस्त रहा।
माइक की महिमा ही ऐसी है माइक लगाने वाले के ‘हेलो…. चेक’…से लेकर सभी का मन लुभाता है। बच्चे चाहते हैं कि माइक पर कुछ बेशक बोल न पाएं पर तरह तरह की आवाज ही निकाल लें, किसी उदघोषक के हत्थे चढ़ा माइक तब तक उसके हाथ से नहीं छूटता जब तक कि आयोजक ये कहने लगे कि भाई वक्ता बहुत हैं और समय कम। फिर भी वो समय समय पर अपनी भड़ास निकालता ही रहता है, किसी नेता के हाथ लगा माइक तब तक चिल्लाता रहता है जब तक कि नेता जी का कोई चमचा नेता जी के कान में यह न कह दे कि – नेता जी दूसरी जगह भी तो चलना है। किसी कवि के हाथ लगा माइक तभी शांत होता है जबकि दूसरे कवि वाह वाह करना बन्द कर दें। यही हाल गायकों के साथ भी होता है, वो तब तक गायन चालू रखता है जब तक कि अंतिम श्रोता भी उठ कर न चला जाये।
माइक की महिमा बड़ी निराली है, उसे इससे कोई मतलब नहीं कि उसे किसी खास कार्यक्रम के लिए लगाया गया है, अपितु उसे लगातार बोलते ही रहना है, कौन बोलेगा, क्या बोलेगा,कितना बोलेगा,कब तक बोलेगा इससे उसका कोई सरोकार नहीं।
एक प्रयास
डॉ0 बृजेश कुमार अग्रवाल
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