कथा : उम्मीद

0 minutes, 0 seconds Read
0Shares

कथा:उम्मीद

अपने पचासवीं वर्षगांठ की पार्टी के पश्चात हर बार की तरह आज फिर दुखी हो गया प्रेम , इसलिए नहीं कि उसके जीवन का एक महत्वपूर्ण वर्ष और कम हो गया, वरन इसलिए कि जिन साथियों को बुलावा भेजा था वे नही आये। ….हालांकि ऐसा नहीं था कि पार्टी में लोग कम थे या उन्होंने मस्ती नही की।पर एक साथी को ही पूरे समय आँखें ढूंढती रहीं।

….प्रेम एक शासकीय शिक्षक था।….छोटा सा परिवार अपनी पत्नी व दो बच्चों के साथ खुश था। आज की पार्टी भी बच्चों की जिद के कारण रखी गयी थी।

प्रेम ने अपने सभी प्रेमीजन व आत्मीयजनों को इस पार्टी के लिए आमंत्रित किया था। उनमें कुछ तो वे लोग थे जिन्हें प्रेम अपनी जान से ज्यादा चाहता था। पूरी उम्मीद थी उसे की वे निश्चित रूप से उसकी पचासवीं वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिये आएंगे ही आएंगे।

प्रेम नवल को बहुत चाहता था। उसे पूरी उम्मीद थी कि चाहे जो हो , अपने व्यस्तम दिनचर्या में से समय निकाल कर नवल सपरिवार उसे बधाई देने आएगा, क्योंकि वो ही तो था जिसे प्रेम अपना सबसे ज्यादा हर दिल अजीज समझता था । …..और वो दो तीन दिन पहले से ही प्रेम को टोक रहा था। …….

“क्यों भाई प्रेम क्या बन रहा है, तेरी वर्षगांठ की रात्रि भोज पार्टी में”…. । “तेरी भाभी पूछ रही थी……. तो बोल रहा हूँ।”

प्रेम भी खुश होते हुए बोला …….”अबे ….ये कोई पूछने की बात है….. बोल भाभी को…..जो कहेगी, बनेगा। …..पर शर्त केवल एक ही है।”……

“हाँ ….बता क्या शर्त है तेरी”। नवल ने प्रेम की बात पूरी होने से पहले ही उत्सुकता से पूछा।……

“बस तुझे आना पड़ेगा।…. ऐसा न हो कि हर बार की तरह कोई बहाना ढूंढ ले।”… प्रेम ने अपनी अधूरी छूटी बात को पूरी करते हुए कहा।

“देख यार तू पिछली बातें भूल जा……इस बार चाहे जो हो तो देख लेना….रात को 12 बजे सबसे पहला मेसेज मेरा ही होगा।”……”अब यार तू खुद सोच मेरी भी तो कुछ मजबूरियां हो सकती हैं।… परिवार की जिम्मेदारियां भी तो हैं।……. सबको देखना पड़ता है।….पर तू ज्यादा दिमाग मत लगा तुझको बोल दिया न….. कि …..चल छोड़ जागना रात को 12 तक, देखना मेरा बधाई मेसेज”.. …..। मुस्कुराते हुए नवल बोला।

“चल ठीक है… देखता हूँ… उम्मीद तो नहीं है…पर तू इतना बोल रहा है, तो फिर एक बार सही।”…. प्रेम ने संदेह भरे मन से कहा।

जन्मदिवस की पूर्व रात को प्रेम की आंखों में चमक थी, रात बारह बजे के इंतज़ार में और बीबी के कई बार टोकने के बाद भी सोने का मन ही नहीं हो रहा था। … बस आँखे घड़ी और मोबाइल पर ही टिकी थीं। समय था कि बीत ही नहीं रहा था।…..खैर घड़ी ने रात के जैसे ही बारह बजाए, प्रेम ने अपने मोबाइल पर आँखें गड़ा दीं।…..समय धीरे धीरे बीतता चला गया, रात्रि का 1 बज गया, पर नवल का मैसेज न देख कर प्रेम का मन भर आया। फिर ये सोच कर रह गया कि कोई नहीं…..शायद सुबह का सबसे पहला मेसेज नवल का ही होगा।…

..रात में विचारों की श्रृंखला ने मष्तिक पर अपना कब्जा जमा लिया। नींद जैसे ही आती, ऐसे ही कोई विचार आकर जगा देता।….आंखों ही आंखों में रात भी बीत गयी। सुबह जल्दी बिस्तर छोड़ कर प्रेम निवृत होकर बैठ गया। ….. पूरी उम्मीद थी कि कोई नही… रात में मैसेज न सही, सुबह की भोर में कॉल जरूर आएगा। पर ये उम्मीद भी ना उम्मीदी में बदलती गयी।

प्रेम भी अब निकल चुका था घर से….. आखिरकार बहुत से काम भी तो उसे ही पूरा करना था।

रात्रि भोज शुरू होते ही प्रेम की निगाहें बार बार दरवाजे की तरफ उठ जाती थीं।….. वही हुआ जो प्रेम सोच रहा था।….. नहीं आया नवल और उसका परिवार।.. सब जा चुके थे।…. प्रेम अब अपने टूटे हुए दिल को लेकर एक कुर्सी पर बैठ गया। …..कि वास्तव में नवल भी उतना ही प्रेम मुझसे रखता है, जितना मैं या फिर ये सिर्फ मेरा कोरा भ्रम है।…..

अचानक मोबाइल की घण्टी बजी, मोबाइल निकाल कर देखा तो नवल का कॉल था।

प्रेम ने उम्मीद भरे दिल से कॉल रिसीव किया कि शायद नवल बोलेगा कि … यार पार्टी खत्म तो नहीं हुई न।… आ रहा हूँ मैं…..

पर हुआ सब उल्टा ही…..नवल ने बोलना शुरू किया।” यार क्या बताऊँ….रात को सोचा कि तुझे मैसेज करूँ …. पर यार साला सिर में इतना दर्द हुआ कि … जल्दी सोना पड़ा। सोचा था सुबह जल्दी उठ कर तुझे विश करूँगा, पर क्या बताऊँ ….. नींद ही 10 बजे खुली।..फिर सोचा कि अब तो रात में जाना ही है तो बस यही सोच कर ऑफिस चला गया।…..शाम को तेरी भाभी की थोड़ी तबीयत खराब हो गयी, तो मैंने सोचा कि ऐसा न हो कि तबीयत और गड़बड़ हो जाये तो फिर आना केंसिल करना पड़ा।…. पर तू टेंशन मत लेना,…. तेरी गिफ्ट पक्की है।……..अभी मोबाइल पर तेरी पार्टी के पिक देखे तो लगा कि …..बढ़िया…. खूब मस्त और शानदार रही तेरी पार्टी।……..चल भाई अब तू भी आराम कर… थक गया होगा तू भी।…..चल भाई मेरी तरफ से जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई।….. चल अच्छा बाय…..शुभरात्रि।…..एक सांस में ही नवल ने अपनी बात पूरी कर दी।

मोबाइल के बंद होते ही प्रेम की आँखों में आंसू भर आये।…..सोचने लगा … क्यों है किसी से इतनी उम्मीद…..क्यों परेशान रहता हूँ मैं इतना…किसके लिये रहता हूँ परेशान….. उस एक के लिए जो कभी तेरा था ही नहीं। और भी तो हैं लोग जो तेरे हैं या तेरे हो सकते हैं, पर दिल कहता है कि हाँ…. हैं सब लोग…..पर नवल जैसा नहीं। ….क्योंकि उसे हो या न हो मुझे तो है नवल से सबसे ज्यादा प्रेम औऱ स्नेह। शायद इस बार नहीं कभी तो नवल को मेरे स्नेह का पता चलेगा।

“अब आ भी जाओ पापा अंदर…… गिफ्ट देखते हैं अपन”। बेटे की आवाज सुनकर प्रेम आंसू पोंछकर उठ गया और हर बार की तरह अपने चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करते हुऐ बेटे के पास पहुंच गया।

उम्मीद और न उम्मीदों से भरी जिंदगी की किताब का वर्ष रूपी एक अध्याय और समाप्त हो गया।

एक प्रयास
डॉ0 बृजेश कुमार अग्रवाल
वार्ड न0 7, डेनिडा रोड
करैरा

0Shares

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!