कविता: नशा व्यसन को छोडो़

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नशा व्यसन को छोडो़


नशा व्यसन के कारण ही बर्बादी आई है,
दुनिया तेरी नशा व्यसन ने नरक बनायी है।

जिसके कारण सिर नीचा हो जाता है,
जो केवल दुख दुविधा ही दे जाता है।
जिसने तोड़ा तनमन सहज सलोना सा,
चेहरा जिसने किया तुम्हारा रोना सा।
कितनी बार बताई तेरी समझ न आई है,
दुनिया तेरी नशा व्यसन ने नरक बनायी है।

अब समाज में नीची नजर तुम्हारी है,
हर पारी ही अब तो हारी हारी है।
नियति बनी है जगह जगह अपमान की,
नीची नजर तुम्हारी अपनी शान की।
देकर कई उदाहरण सौ सौ बार बताई है,
दुनिया तेरी नशा व्यसन ने नरक बनायी है।

माता रोती देख देखकर लाल को,
सहन करे कैसे बेटे के हाल को।
पिता ने लालन पालन में क्या कमी रखी,
माँ ने अपने हिस्से सदा ही नमी रखी।
तेरे कारण घर का हर पल ही दुखदायी है,
दुनिया तेरी नशा व्यसन ने नरक बनायी है।

तुमने तो सबके ही सपने चूर किये,
अपनों से अपने ही तुमने दूर किये।
तुमने नशा किया क्या सुख पाया है,
खुद को खुद से ही तुमने भरमाया है।
बच्चों का मुख देख जहाँ प्रभु की प्रभुताई है,
दुनिया तेरी नशा व्यसन ने नरक बनायी है।

घर की हालत दिन दिन जर्जर होती है,
बेटी बिस्कुट मांग मांग कर रोती है।
पत्नी असहाय सी माथा ठोक रही,
बार बार बिटिया पापा को रोक रही।
लौट के आजा इसी में तेरी बहुत भलाई है,
दुनिया तेरी नशा व्यसन ने नरक बनायी है।
सतीश श्रीवास्तव
मुंशी प्रेमचंद कालोनी करैरा

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