लघु कथा
नेता जी
बुद्धा लाल सत्ताधारी पार्टी के एक नेता थे। सब लोग उन्हें भाई साहब कह कर ही बुलाते थे। हालांकि नेता जी पार्टी में न तो कोई मंत्री पद पर थे और न ही ऊंचे पद पर । पर शहर में उनकी चलती वेहिसाब थी। कई कार्यालयों के कुछ अधिकारी व कर्मचारी भाई साहब की बात टालते नही थे और भाई साहब के कहने पर काम आदि करवा देते थे।
रोज की तरह राजू आज भी भाई साहब के पास आया, झुक कर पैर छुए और हाथ जोड़ कर बोला।……..”भाई साहब आज तो करवा दो मेरा काम । आपने बोला था कि आप लगवा दोगे कहीं न कहीं मेरी नौकरी।” ……
नेता जी अखबार में सर घुसाए ही बोले ……अरे हाँ …….तेरा काम करवाना है यार, याद है मुझे …….तू परेशान काहे होता है। कह तो दिया लगवा दूंगा तुझे कहीं न कहीं। ……बेकार परेशान होता है।” ……भाई साहब के हर बार की तरह इस बार भी दिए आश्वाशन से राजू के चेहरे पर चमक तो आई पर शंका भी हर बार की तरह ही साफ झलक रही रही थी, कि न जाने कब लगवाएंगे भाई साहब नौकरी।
“अरे हाँ….. राजू तू अच्छा आ गया यार …..जा अंदर तेरी भाभी को कुछ सब्जी बगैरह मंगवाना है। जा ……जा, पहले वो ले आ।…….थैला ले आ अंदर जाके और पूछ आना क्या क्या लाना है और देखता हूँ मैं ,…….करता हूँ बात…. नए सीएमओ आये थे मिलने मुझसे……बात करता हूँ उनसे तेरी नौकरी की।”
मेरी भी मित्रता हो चली थी नेता जी से तो आज भी उन्ही के पास बैठा था मैं। राजू पहले भी मेरे सामने कई बार आ चुका था और हर बार की तरह इस बार भी “भाई साहब” ने वही किया जो हर बार करते आये थे। राजू को बाजार भेज दिया सब्जी लाने।……….आज मुझसे रहा नहीं गया । आखिर मैंने पूछ ही लिया नेता जी से।
………”यार नेता जी, इतनी तो चलती है आपकी…… क्यों नही लगवा देते राजू को कहीं।”
अब नेता जी अखबार से सिर निकाला और कुटिल मुस्कान चेहरे पर लाते हुए बोले।
……”भैया……तुम नही समझोगे, तुम अपने काम से काम से रखो न।”
….’फिर भी……..काफी समय से देख रहा हूँ राजू को’……… तुम उसे हमेशा टरका देते हो।’……. मैंने फिर टटोला।
“देखो ऐसा है”…………अगर मैंने इसकी कहीं नौकरी लगवा दी न , तो ….ये सब्जी बगैरह क्या तुम्हारा बाप लाएगा।”……..नौकरी के बहाने कम से कम वो मेरे सामने खड़ा तो है।”…. ”अरे …नौकरी लग गयी तो क्या वो आएगा,.. फिर कभी यहां मुँह दिखाने”।
नेता जी की बात सुनकर मैं खिसियानी सी हंसी हंसते हुए बोला….. “हाँ भई….. बात तो तुम्हारी पते की है।……सोच रहा था,….. कि वाह भई ……नेता जी का काम दिलवाने के बहाने मुफ्त में काम करवाना,…. इनसे सीखना पड़ेगा।….. नही तो अपने बाप को तैयार रखना होगा, इनके काम के लिए।
……समझ चुका था मैं …. नेता जी को सभी इतना सम्मान क्यों देते हैं सभी। ………..मैंने भी ससम्मान नेता जी के पास से निकलना ही उचित समझा।
एक प्रयास
डॉ0 बृजेश कुमार अग्रवाल
वार्ड नं 7, डेनिडा रोड करेरा