मैं और मेरी कविताएं!!
सोचती हूँ जब लिखूँ मैं कविताएं..
ह्रदय के सारे स्पंदन लिख दूँ
दर्द से दोहरती हवा लिख दूँ
चाँद पर गुजरी व्यथा लिख दूँ
प्रकृति से कहूँ
जब कोई बात……..
प्रकृति की ही व्यथा कह दूँ…
शायद समझ सके,
मुझे वह,
मौन अपनी व्यथा लिख दूँ।
जानती हूँ
हर रात के बाद एक सबेरा है,और
चल दूँगी उठकर
एक नई राह की तलाश में
सूरज की रोशनी को तरसते नयन
शायद पा जाए चैन
मैं नही चाहता भटकना
चाहता हूँ सुकून
चला अक्सर नदी के किनारों पर
चाँद से मिलने
यही तो मेरे साथी हैं तन्हाई के
मुझे मूक संबल देते हैं
एक बार फिर चल पड़ती हूँ सफर पर
अपने आयाम के लिए।।
रचना- कल्याणी तिवारी