कविता: चेतावनी

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चेतावनी


कुदरत से नाजायज मत कर,
छेड़ाखानी रे
वरना मिट जायेगी तेरी नाम निशानी रे।

आज हिमालय को गुस्साया,
मानव ने हरकत कर
बांध सुरंगों के उसके
सीने में जाले बुनकर

भारी पड़ जायेगी मतकर,
कारस्तानी रे
वरना मिट जायेगी तेरी,
नाम निशानी रे।

तेरी खुशहाली को उसने,
धरा सोंप दी सारी
पर तूने अपना घर भरने
खोद खदानें डारीं

उसकी मर्यादा से मतकर,
खेंचातानी रे।
वरना मिट जायेगी तेरी,
नाम निशानी रे।

तरुवर से फल, प्राणवायु,
भोजन भी तुमको देती
दवा,दुआ सब देने पर भी,
छाती उसकी रेती

अपनी ही सांसों से मतकर,
नाफरमानी रे।
वरना मिट जायेगी तेरी,
नाम निशानी रे।

ऊंची अट्टाली, सड़कें ये,
सभी धरी रह जायेंगी
जिस दिन उसने करवट बदली,
मिट्टी में मिल जायेंगी

उसके आगे नहीं चले,
तेरी मनमानी रे।
वरना मिट जायेगी तेरी,
नाम निशानी रे।

जिन बम बन्दूकों को तूने,
अपनी ढाल बनाया
कोरोना में देख लिया है,
कुछ भी काम न आया

अब भी संभल जाओ मत करना,
तू नादानी रे
वरना मिट जायेगी तेरी
नाम निशानी रे।

     रचनाकार
प्रभु दयाल शर्मा राष्ट्रवादी
      करैरा
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