आजादी के गीत सिर्फ दो दिन नहीं, बल्कि पूर्ण बर्ष गाए जाना चाहिए: सीमा जैन

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ग्वालियर।संस्कार भारती, मध्य प्रदेश भारत प्रान्त साहित्य विधा के रचनात्मक प्रयास “सृजन” की लेखन प्रशिक्षण की ऑनलाइन कार्यशाला की साप्ताहिक गोष्ठी के 55वे अंक में “स्वतन्त्रता आन्दोलन में साहित्यकारों का योगदान” जैसे महत्वपूर्ण विषय पर परिचर्चा की गई।


चर्चा के प्रारंभ में विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ.मंजुलता आर्य ने कहा कि- “स्वतंत्रता शब्द को आमतौर पर देश की राजनैतिक स्वतंत्रता समझा जाता है, जबकि स्वतंत्रता से तात्पर्य- मानव के इस धरती पर जन्म लेने के बाद उसे खानपान की स्वतंत्रता, मानसिक स्वतंत्रता, रीति रिवाज और परंपराओं की स्वतंत्रता, स्वयं व परिवार के भरण पोषण हेतु आर्थिक स्वतंत्रता व धार्मिक स्वतंत्रता से होता है। इसीलिए जब भारतवासियों के मन-मस्तिष्क में भारत को स्वतन्त्र कराने का भाव जागृत हुआ, तो अनेक धार्मिक, समाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक आन्दोलन चलाए गए। समाजसेवी व देशप्रेमियों ने साहित्य के माध्यम से सभी प्रकार की स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन किए।”


मुख्य वक्ता सीमा जैन ने कहा कि- “हमें आजादी के गीत सिर्फ 2 दिन नहीं, वरन पूरे वर्ष गाना चाहिए। स्वाधीनता काल में साहित्यकारों ने साहित्य जन-कल्याण के लिए रचा। साहित्य को जीवन में जो उतारता है, वही अमर हो जाता है। प्रेमचंद्र व गांधीजी ने मानवता का साहित्य रचा। दोनों के जीवन का उद्देश्य दूसरों के सुखों के लिए त्याग करना रहा। साहित्य वह सृजन है, जो मानव का निर्माण करता है।”
संस्कार भारती के प्रमुख प्रदीप दीक्षित ने कहा कि- “स्वतंत्रता आंदोलन के समय साहित्यकारों के दो वर्ग थे। एक वे जो क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग भी लेते और साहित्य सर्जन भी करते, जबकि दूसरे वे जो अपने सृजन के माध्यम से क्रांतिकारियों में उत्साह उत्पन्न करते रहे।”
व्याप्ति उमड़ेकर ने कहा कि- “कलम के क्रांतिकारियों ने भी स्वतंत्रता के लिए आंदोलन में सक्रिय योगदान दिया, जिसे विस्मृत नहीं कर सकते। महावीर प्रसाद द्विवेदी, मैथिलीशरण गुप्त, सुभद्रा कुमारी चौहान, दिनकर व राम प्रसाद बिस्मिल का साहित्य इसका उत्कृष्ट उदाहरण है।”
गीता गुप्ता ने कहा कि- “1857 से 1947 तक के क्रान्तिकारियों में उत्साह भरने का कार्य उस समय के साहित्यकारों ने किया। राजाराम मोहन राय, मदनमोहन मालवीय, जुगलकिशोर व भीमराव आंबेडकर आदि प्रतिदिन लेखन करते थे। मानसिकता परिवर्तन करने के लिए साहित्य सबसे अच्छा माध्यम है।”
मुंगावली से जुड़ीं डाॅ. नेहा आर्य ने कहा कि – “भारतीयों में राष्ट्रभक्ति की भावना जागृत के लिए साहित्यकारों के काव्य कहानियाँ ही नहीं, अपितु पत्रकारिता ने भी मुख्यधारा में जोड़ने का महनीय कार्य किया। भारतीय जन जगत के वीर सैनिक ही नहीं वफादार प्राणी जैसे कि महाराणा प्रताप का घोड़ा ‘चेतक’ भी सम्मिलित है। जिस पर साहित्यकार श्याम नारायण पाण्डेय ने ‘हल्दीघाटी’ की रचना की।”
डॉ तृप्ति तोमर ने कहा कि- “भारतेंदु काल से आधुनिक काल तक के साहित्यकारों ने स्वतंत्रता के लिए अथक प्रयास किए कई क्रांतिकारी स्वयं ऐसे गीत सृजित करते थे जिसे गा करके स्वयं वीर भावना से भरते और जन-जन में राष्ट्रीयता का भाव भरते थे। बहादुरशाह व सावरकर ने भी ऐसा ही साहित्य रचा।”
कार्यक्रम का संचालन करते हुए ब्रजेन्द्रनाथ मिश्र ने कहा कि- “स्वतंत्रता संग्राम के सत्य तथ्य को जानने का साहित्य उत्कृष्ट माध्यम है।”
तदुपरान्त नन्दबिहारी शर्मा ने कार्यक्रम में उपस्थित संस्कार भारती के पदाधिकारियों, गुरुजनों, साहित्यकारों, शोधकर्ताओं, राष्ट्र प्रेमी व संस्कृति प्रेमी तथा विद्यार्थियों का आभार प्रकट किया।
इस अवसर पर संस्कार भारती के प्रमुख राजीव वर्मा,
अतुल अधौलिया, डॉ. राजरानी शर्मा, भावेश रोहिरा, भरत साहू, हरी बुनकर, सुमिता राय, ज्योति, डॉ.कनकलता वघेल, जिज्ञासा पाण्डेय, पुष्पेन्द्र शर्मा, पूनम श्रीवास्तव, मीनू नागर, ललितमोहन व उदय सिंह रावत तथा संस्कार भारती के पदाधिकारीगण, शिक्षकगण, विद्यार्थी, शोधार्थी एवं अनेक साहित्यानुरागी, संस्कृति प्रेमी व राष्ट्रप्रेमी उपस्थित रहे।

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