मताधिकार का अनमोल पल

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आलेख: मताधिकार का अनमोल पल


दीवारें रंगी जाने लगें तो समझो चुनाव आ गए….गलियों सड़कों और चौराहों पर पोस्टर बैनर झंडे भिन्न-भिन्न रंगों के टांगे जाने लगें तो समझो चुनाव आ गए….धूल और कीचड़ उछालने का क्रम क्रमशः बढ़ने लगे और गला फाड़ फाड़ पर चिल्लाने वाले घूमने लगें तो समझिये चुनाव आ गए….गली गली में शोर है….फलां आदमी चोर है जैसे आरोप प्रत्यारोपण की प्रतियोगिता होने लगे तो समझो चुनाव आ गए..चूहा किस्म के लोग बिल्ली किस्म के लोगों के साथ गले में हाथ डाल कर घूमने लगें तो समझो चुनाव आ गए.. जिसके हाथ से कभी एक गिलास पानी नहीं मिला वही आदमी पउआ लेकर आ जाये और जूता हाथ में लेकर घूमने वाला आदमी भी आपके पैरों पर सिर रख रहा हो तो समझ जाओ कि चुनाव आ गए.
यह चुनाव है आदमी से क्या क्या करवा लेता है दिनभर बस्ती में घूमता है मिन्नतें करता है और रात में घर आकर समीक्षा करता है अपने आप को जीत के काफी नजदीक समझता है और यह कसम खाकर सो जाता है कि लोगों की बातों में आकर अब की बार तो चुनाव लड़ लिया किंतु आइंदा किसी की बातों में नहीं आना है,भाड़ में जाए ऐसी राजनीति।


सच है अब समय नहीं रहा.
न आदमी का भरोसा है न ही पार्टी का,कई जगह एक ही परिवार के आपस में आमने सामने कूद पड़े तो कई जगह पार्टी के ही नेता एक दूसरे के साथ खो खो खेल रहे हैं.
एक दूसरे के सामने एक दूसरे को जिताने की चर्चाएं करते हैं समीक्षाएं करते हैं और फिर बाद में एक दूसरे को निबटाने के लिए जी जान लगा देते हैं.
इस माहौल को देखकर कभी कभी हंसी आती है और कभी कभी चिंता भी होती है कि हमारे समाज में पद लोलुपता किस प्रकार आत्मीय सम्बंधों का विघटन कर रही है।

एड


मुझे मेरे एक मित्र ने पोस्ट भेजी थी जिसमें चुनाव की परंपरा के शुरुआती दौर का उल्लेख था.
लिखा था-लखनऊ में पहले पहल म्युनिसपैलिटी के चुनाव हुए.
चौक से, अपने समय की मशहूर तवायफ़ और महफ़िलों की शान दिलरुबा जान उम्मीदवार बनीं ..
उनके खिलाफ कोई चुनाव लड़ने को तैय्यार नहीं हुआ ..
उन दिनों एक मशहूर हकीम साहेब थे
हकीम शम्शुद्दीन.
उनका चौक में दवाखाना था और वह एक मशहूर हकीम थे ..
दोस्तों ने, ज़बरदस्ती उनको चुनाव में दिलरुबा जान के ख़िलाफ़ खड़ा कर दिया!
दिलरुबा जान का प्रचार प्रसार ने ज़ोर पकड़ा .. चौक में, महफ़िलें लगने लगी .. मशहूर नर्तकियों के प्रोग्राम होने लगे .. महफ़िलें खचा ख़च भरी रहती थीं; वहीं हकीम साहेब के साथ बस वो चंद दोस्त थे, जिन्होंने उनको इलेक्शन में झोंका था!
अब हकीम साहेब नाराज़ हुए कि “तुम लोगों ने पिटवा दिया मुझे! मेरी हार तय है.”
दोस्तों ने हार नहीं मानी और एक नारा दिया:
“है हिदायत चौक के हर वोटर-ए-शौक़ीन को,
दिल दीजिए दिलरुबा को, वोट शम्शुद्दीन को!”
इसके जवाब में दिलरुबा जान के समर्थकों ने नारा दिया:~
“है हिदायत चौक के हर वोटर-ए-शौक़ीन को,
वोट दीजिए दिलरुबा को, नब्ज़ शम्शुद्दीन को.”
कहना ना होगा हकीम साहेब का नारा कामयाब हो गया और वो इलेक्शन जीत गए!
लखनऊ की तहज़ीब के मुताबिक़ दिलरुबा जान ने हकीम साहेब को घर आकर बधाई देते हुए कहा था-
मैं इलेक्शन हार गयी, आप जीत गए….मुझे इसका कोई रंज नहीं है. आपकी जीत से एक बात तो साबित हो गयी कि लखनऊ में मर्द कम और मरीज ज्यादा हैं!”
ये थी इलेक्शन लड़ने की तहज़ीब!
और आज के चुनाव में हरेक प्रत्याशी ईमानदार है . . लगनशील है सुखदुख का साथी है विकास का मसीहा बन जाता है मतदाता भी क्या करें बेचारे…अच्छों में अच्छा चुनने के काम को तो आसानी से कर सकता है अब तो खराब में से कम खराब ढूढ़ने की मशक्कत करनी पड़ती है कि चलो यह आदमी औरों से ठीक है.
विज्ञापनों पर न जाऐं
और न ही नारों में
उलझकर फडफडायें.
आपका वोट अमूल्य है
और है अनमोल..
वोट डालने के पहले
प्रत्याशियों को
मन की तराजू में तोल.
वोट डालने अवश्य जाना
यह है तुम्है
तुम्हारे मताधिकार का
अनमोल पल,
आपका वोट ही निश्चित करेगा
आने वाला सुखद कल.
मतदान प्रारंभ होने और मतदान समाप्त के निर्धारित समय का ध्यान रखें अपनी वोटर पर्ची, और पहचान संबंधित आवश्यक दस्तावेज अवश्य लेकर जायें तथा बगैर किसी लोभ लालच के मतदान करें.
* सतीश श्रीवास्तव
मुंशी प्रेमचंद कालोनी करैरा

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