कविता:खत्म होय अन्याय

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कविता:खत्म होय अन्याय



कल्लू बोलौ जुम्मन से कि
सुन लै जुम्मन भैया ,
अब चुनाव में फिर सैं होनें
अपनी पूंछ पुछैया ।
बड़े बड़े पेटन के देखो
दरवाजिन पै आनै,
गलियन के चक्कर काटेंगे
एक वोट के लानै ।
घर घर आकर वे पूछेंगे
सुख दुख का सब हाल ,
मछुआरों से आन बिछा हैं
जाने कित्ते जाल ।
मछली फंसी जाल में
उसको काटेंगे खाएंगे ,
लै कैं वोट न देखें पीछे
वापस न आएंगे ।
बना बना कैं भोले चेहरे
तुमखों आन फंसा हैं,
बात बात में बात बनाकै
तुमको खूब हंसा हैं ।
जाकी ऐसी वाकी वैसी
जानै का का कैं हैं,
आसमान की भरैं उड़ानें
झूठी सांची दै हैं ।
पैर छुअइन सैं तुम बचियो
करियो न अंधेर ,
वरना पांच मिनट में हो जै
पांच साल की देर ।
दै दै वोट हार गए हमतौ मिलौ न अब तक न्याय ,
अबकी बार करो कुछ ऐसा
खत्म होय अन्याय . ….
** सतीश श्रीवास्तव
मुंशी प्रेमचंद कालोनी करैरा

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