राम का विरोध करने वालों का पतन और आदर करने वालों का उत्थान होता है- शंकराचार्य

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भिण्ड(पवन शर्मा)।शहर के अटेर रोड रेलवे क्रॉसिंग के पास स्थित स्वरूप विद्या निकेतन में काशी धर्मपीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज के श्रीमुख से चल रही श्रीराम कथा के तीसरे दिन शंकराचार्य जी ने भगवान श्री राम की लीलाओं का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान हमेशा आनंद में रहते हैं इसीलिए उनके आसपास का वातावरण भी आनंदमय रहता है। भगवान श्रीराम की लीलाओं में वर्णन है कि भगवान श्रीराम के अवतरण के बाद चारों ओर आनंद की बरसात हो रही थी।
शंकराचार्य जी ने निंदा को बुराई और लड़ाई का मूल बताते हुए कहा कि किसी की भी कभी निंदा नहीं करनी चाहिए। सास बहू की, बहू सास की निंदा करने छोड़ दें तो घर मे क्लेश नहीं होगा और सभी आनंद के साथ रहेंगे।
उन्होंने वर्णन करते हुए कहा कि ऋषि विश्वामित्र ने जब यज्ञ किया तो उन्होंने राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को यज्ञ की रक्षा करने के लिए भेजने को कहा। ऋषि विश्वामित्र ने कहा कि आप पुत्रमोह के चलते राम को भेजने में संकोच करेंगे लेकिन राम तो अबद्ध हैं। राम को कोई नहीं मार सकता। लेकिन दशरथ मूर्छित हो गए और होश आने पर बोले कि हे गुरुवार मुझे सभी बच्चे प्यारे हैं लेकिन राम को नहीं भेज सकता। इसपर विश्वामित्र ने कहा कि तुम राम को नहीं जानते लेकिन मैं जानता हूँ। राम कोई साधारण मनुष्य नहीं बल्कि साक्षात ब्रह्म हैं। कथा में शंकराचार्य जी कहते हैं कि ऋषि विश्वामित्र और गुरु वशिष्ठ दोनों ही महात्मा परमात्मा हैं तभी वह शिष्य को परम तत्व का ज्ञान देते हैं। महात्मा की परिभाषा देते हुए शंकराचार्य जी ने कहा कि पंडित पुजारी महात्मा नहीं होते, बल्कि जो ब्रह्मत्व को जान लेता है वह महात्मा होते हैं। वह किसी भी जाति किसी भी धर्म के हो सकते हैं। ऐसे ही परमत्व को जानने वाले ऋषि विश्वामित्र एवं गुरु वशिष्ठ भी परमात्म स्वरूप ही हैं।
उन्होंने कहा कि गुरु के ज्ञान को छोड़कर जो दूसरों के ज्ञान, दूसरों की बातों को मानता है उसका पतन हो जाता है। ईश्वर की दो शक्तियां काम करती हैं एक ज्ञान शक्ति और दूसरी क्रिया शक्ति। ज्ञान का संबंध मस्तिष्क ज्ञानेंद्रियों से है और क्रिया का संबंध कर्म इंद्रियों से है। एक प्रजा शक्ति है दूसरी प्राण शक्ति। प्रजा शक्ति प्रधान होता है ब्राह्मण और प्राण शक्ति प्रधान होता है क्षत्रिय। ब्राह्मण एवं क्षत्रिय दोनों मिलकर के विश्व की समृद्धि में सहायक होते हैं। ब्राह्मण शक्ति के बिना क्षत्रिय शक्ति की वृद्धि नहीं होती इसका उल्लेख रामायण सहित वेदों में किया गया है। विश्व कल्याण के लिए ज्ञान और बल दोनों की आवश्यकता होती है। अगर गुरु पर शिष्य को विश्वास है तो गुरु शिष्य के मन को बदल सकता है। इसी प्रकार जब दशरथ ने ऋषि विश्वामित्र को श्रीराम को देने में संकोच किया तब दशरथ के गुरु वशिष्ठ ने राजा दशरथ को ज्ञान दिया। जिसके बाद राजा दशरथ सहर्ष राम को ऋषि विश्वामित्र को सौंपने के लिए तैयार हो गए। जिसके बाद स्वस्तिवाचन के साथ राम लक्ष्मण को ऋषियों ने अपने साथ लिया। रास्ते में ऋषि विश्वामित्र ने राम को कई विधाओं का ज्ञान दिया।

संध्या पूजन का महत्व बताते हुए शंकराचार्य ने कहा कि सुबह शाम संध्या पूजन करने से पाप नष्ट हो जाते हैं। जो व्यक्ति संध्या पूजन नहीं करता है उसके पाप पहाड़ के समान हो जाते हैं जो फिर नष्ट नहीं होते हैं। इसलिए सुबह शाम संध्या करना चाहिए।

रामकथा से पूर्व माँ अन्नपूर्णेश्वरी वेद अनुसंधान संस्थान के आचार्यों एवं बटुकों के द्वारा शंकराचार्य जी का पादुका पूजन करवाया गया। जबकि सुबह के समय शिष्यों द्वारा शंकराचार्य जी का पूजन अर्चन कर आशीर्वाद लिया गया। श्रीराम कथा का आयोजन श्रीकाशी धर्मपीठ के तत्वावधान में सभी भक्तों के सहयोग से नारायण सेवा समिति भिण्ड के द्वारा कराया जा रहा है।

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