कबीर ने वर्गहीन समाज का सपना देखा: डाॅ. राजरानी शर्मा

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ग्वालियर। संस्कार भारती मध्य प्रदेश भारत प्रान्त साहित्य विधा के रचनात्मक प्रयास “सृजन” की लेखन प्रशिक्षण की ऑनलाइन कार्यशाला की साप्ताहिक गोष्ठी के ८५ वे अंक में “कबीर दास जी के काव्य की वर्तमान में प्रासंगिकता” जैसे महत्वपूर्ण विषय पर ऑनलाइन गूगल मीट पर परिचर्चा की गई।
कार्यक्रम संयोजन
डाॅ. श्रद्धा सक्सेना ने किया।


शुभम सिंह विष्ट ने प्रस्तावित विषय का प्रवर्तन करते हुए कहा कि- “कबीर दास जी ने व्यक्तिगत जीवन के अनुभवों को छोटे – छोटे दोहों के रूप में समाज के समक्ष प्रस्तुत किया है। इन्होंने जीवन के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला। सभी वर्गों के लिए उन्होंने लिखा, जो वर्तमान में भी प्रासंगिक है।”


मुख्य वक्ता डॉ. राजरानी शर्मा ने कहा कि- “कबीर जैसे सन्त हमारे जीवन में घुले मिले हैं। भक्तिकाल के सन्त काव्य – परम्परा को सम्प्रेषण की आवश्यकता नहीं है। सन्त काव्य सन्तों के व्यक्तित्व व चिन्तन से निकली हुई आवाज थी। कबीर का काव्य मर्म से निकला। वे ऑंखों देखी बात कहने वाले युगद्रष्टा समाज सुधारक थे। उन्होंने लोक के मन का भ्रम दूर किया। समाज की दुर्दशा से घायल होकर उन्होंने आवाज उठाई।

उनके कहने का ढ़ंग सरल था, इसलिए प्रासंगिक है। उन्होंने वर्गहीन समाज का सपना देखा, जो आज प्रासंगिक है।”
डॉ. वन्दना हिन्दुस्तानी ने कहा कि- “कबीर में लोक – कल्याण की भावना रही। उन्होंने जातिगत भेदभाव मिटाने व मानवतावाद की स्थापना की कही। उनकी रचनाओं में विश्व – बन्धुत्व की भावना है। उनका काव्य उदात्त मार्ग प्रशस्त करता है। मानव-मूल्यों के परिष्कार की दृष्टि से वे प्रासंगिक हैं।
भोपाल से जुड़ी कवयित्री प्रतिभा द्विवेदी ने कहा कि- “कबीर के काव्य में समाज कल्याण का भाव समाहित है। इस युगदृष्टा कवि ने जन-जन के मन में बसने वाली बात कही। उनका व्यक्तित्व व कृतित्व अथाह सागर है। उसमें जितना गहरा डूबेंगे,उतने ही अमूल्य मोती मिलेंगे। उनका काव्य स्वच्छ समाज के निर्माण में सहायक है।”
साहित्यकार उमा उपाध्याय ने कहा कि- “कबीर ने अन्धविश्वास पर प्रहार कर पाखण्ड को कुचलने का बीड़ा उठाया। एकजुटता का संदेश दिया। सत्य की खोज की। समता के सिद्धान्त को महत्व दिया। वे काव्य के ज्योति पुंज हैं। उन्हें किसी एक दायरे में सीमित नहीं किया जा सकता है।”
गीता गुप्ता ने कहा कि- “वर्तमान में वृद्धाश्रम की समस्या बढ़ रही है। ऐसे में कबीर का काव्य प्रासंगिक है। उन्होंने श्रम की महत्ता तथा आत्मविश्वास बढ़ाने वाला काव्य रचा। उनका काव्य परोपकार की भावना जगाता है और कर्मकाण्ड का विरोध करता है, जो वर्तमान समय की सशक्त मांग है।”
सुमति राय ने उनके दोहों के माध्यम से कल का कार्य आज करने की प्रेरणा दी।
पुष्पा शर्मा ने उनके काव्य में व्याप्त जीवन दर्शन पर प्रकाश डाला।
नितिन ने कबीर के दोहों को जीवनोपयोगी बताया।
संस्कार भारती के प्रमुख प्रदीप दीक्षित ने कहा कि- “उनका साहित्य वैचारिक उन्नति प्रदान करता है।”
कबीर के काव्य को नव – चेतना वाला काव्य बताते हुए कार्यक्रम का सुचारू संचालन भावेश रोहिरा ने किया।
कार्यक्रम के अन्त में डाॅ.मंजुलता आर्य ने इस कार्यक्रम से जुड़े संस्कार भारती के पदाधिकारियों, गुरुजनों, शोधकर्ताओं, हिन्दी भाषा प्रेमी, धर्मप्रेमी तथा विद्यार्थियों का आभार प्रकट किया।
इस अवसर पर साधना अग्रवाल, जितेन्द्र यादव, ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र, ब्रजेश माहोर, संदीप कुमार, अजय पाराशर, काजल झा, अजय पाटीदार, रोहित चौहान, ऋषिकेश मीणा, भरत साहू, शैलजा दीक्षित, भगवान दास माणिक, डाॅ. तृप्ति तोमर, पुरूषोत्तम दीक्षित, मनु मजेजी,
भारती वांदिल, निधि सक्सेना, राकेश देवेश, वन्दना सिंह कुशवाह, डॉ. नेहा आर्य, डॉ. अमित शर्मा, दिनेश मिश्रा, जिज्ञासा पाण्डेय, जितेन्द्र यादव, संस्कार भारती के पदाधिकारी, शोधार्थी, छात्र छात्राऍं एवं अनेक साहित्यकार उपस्थित रहे।

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