कविता: तिरंगा फहराओ

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तिरंगा फहराओ
तिरंगा है भारत की शान
तिरंगा भारत की पहिचान
नई पीढ़ी को बतलाओ
मेटो सब मतभेद
तिरंगा घर-घर फहराओ

कर में थाम तिरंगा करते,
विजयी विश्व का गायन
क्रूर फिरंगी के भी सुनकर,
हिल जाते सिंहासन
वतन पर जो हो गये कुर्वान
बढ़ा गये आजादी का मान
उन्हीं का यश गौरव गाओ
मेटो सब मतभेद
तिरंगा घर -घर फहराओ

हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई,
सबने मिल इक संगा
लाठी गोली खाईं पर ना
झुकने दिया तिरंगा
तिलक ‌का‌ उदघोषित सुविचार
स्वतंत्रता जन्मसिद्ध अधिकार
अहिंसा का पथ अपनाओ
मेटो सब मतभेद
तिरंगा घर-घर फहराओ।

आजादी के वीर बांकुरे,
वंदे मातरम् कहते
अंग्रेजों की सूली पर,
चढ़ जाते हंसते-हंसते
चंद्रशेखर जी का बलिदान
अमर हैं असफाक उल्ला खान
तिरंगे पर बलि-बलि जाओ
मेटो सब मतभेद
तिरंगा घर-घर फहराओ।

गांधी नेहरू संग पटेल ने,
इसकी महिमा गाई
वीर शिरोमणि सावरकर,
इसकी कीमत समझाई
बोलते नेताजी जय हिन्द
भगतसिंह, राजगुरु, अरविंद
देश में अमन-चैन लाओ
मेटो सब मतभेद
तिरंगा घर-घर फहराओ।

केशरिया है रंग शौर्य का,
श्वेत सत्य का साथी
हरा रंग है हरियाली का,
चक्र शांति पथ पाथी
फूंकता यह वीरों में प्राण
देशभक्तों का कर सम्मान
गान सब जन गण मन गाओ
मेटो सब मतभेद
तिरंगा घर-घर फहराओ।
रचनाकार
प्रभु दयाल शर्मा राष्ट्रवादी
करैरा

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