हिन्दी का प्रवाह कार्यालयों में ऊपर से नीचे की ओर होना चाहिए

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ग्वालियर।संस्कार भारती, मध्य प्रदेश भारत प्रान्त साहित्य विधा के रचनात्मक प्रयास “सृजन” की लेखन प्रशिक्षण की ऑनलाइन कार्यशाला की साप्ताहिक गोष्ठी के 56वे अंक में “स्वाधीनता के 75 वर्ष और हिन्दी का विकास” जैसे महत्वपूर्ण विषय पर परिचर्चा की गई।
चर्चा के प्रारंभ में विषय प्रवर्तन करते हुए कार्यक्रम संयोजक डॉ. श्रद्धा सक्सेना
ने कहा कि- “हिन्दी की देवनागरी लिपि की अनुकूलन क्षमता की वजह से हिन्दी का तीव्रता से विकास हुआ। अनुवाद की क्षमता के कारण विश्व का सारा ज्ञान इसमें समा गया। आज विश्व में जो है, वो हिन्दी में है और जो हिन्दी में है, वो विश्व में है। हिन्दी, साहित्य से निकल कर रोजगार तक आ गई। यह उसकी विकास यात्रा है।”
लखनऊ से जुड़े इण्डियन ओवरसीज बैंक के पूर्व सहायक महाप्रबंधक अजय कुमार सिंह ने मुख्य वक्ता के रूप में कहा कि- 14 सितम्बर 1949 में हिन्दी को राजभाषा घोषित किया गया। उस समय हिन्दी का कुछ प्रान्तों में हिन्दी का विरोध होता था। किन्तु अब हिन्दी ने काफी विकास किया है। कार्यालयों में हिन्दी का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होना चाहिए, ताकि हिन्दी का प्रवाह व प्रसार सरलता व शीघ्रता से हो सके।”
मीनाक्षी दोनेरिया ने कहा कि- “हिन्दी समय के साथ-साथ सुसज्जित होती गई है, दक्षिण के कुछ प्रान्तों को छोड़कर हिन्दी सम्पूर्ण राष्ट्र में बोली जाती है।”
ब्रजेन्द्रनाथ मिश्र ने कहा कि- “स्वाधीनता के 75 वर्षों में समाचार पत्र के पाठकों में वृद्धि, दूरदर्शन के चैनलों में विस्तार व हिन्दी के नए उपकरणों का विकास व निर्माण हुआ है।”
कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रो. कल्पना शर्मा ने कहा कि- “यदि हम सभी हिन्दी के प्रयोग पर गर्व अनुभव करेंगे, तो हिन्दी का विकास व विस्तार होगा।”
बलवीर ने कार्यक्रम के अन्त में कार्यक्रम में उपस्थित संस्कार भारती के पदाधिकारियों, गुरुजनों, साहित्यकारों, शोधकर्ताओं, भाषा प्रेमी व संस्कृति प्रेमी तथा विद्यार्थियों का आभार प्रकट किया।
इस अवसर पर संस्कार भारती के प्रमुख अतुल अधौलिया, भावेश रोहिरा, पद्मा शर्मा, सुनीता पाठक, जोशना गोरी, जय सिंह, भगवान दास माणिक, निधि, ऋतिक कुशवाह, शैलेन्द्र गुर्जर, ललितमोहन, डॉ.मंजुलता आर्य, परमाल कुशवाह, शिवानी पटेल, ऋषिकेश मीणा, पुष्पेन्द्र शर्मा तथा डॉ.कनकलता वघेल व संस्कार भारती के पदाधिकारीगण, शिक्षकगण, विद्यार्थी, शोधार्थी एवं अनेक साहित्यानुरागी, संस्कृति प्रेमी व राष्ट्रप्रेमी उपस्थित रहे।

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