करैरा आयें तो बिहारी जी के दर्शन अवश्य करें
करैरा नगर इतिहास के पन्नों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है,करहरा से परिवर्तित होकर करैरा नगर की डेढ़ लाख से अधिक आबादी हुआ करती थी ऐसा इतिहास में उल्लेख मिलता है.
करैरा नगर अत्यंत ही धार्मिक एवं साम्प्रदायिक सौहाद्र के लिये जाना जाता है यहां आस्था के केन्द्र है जहां लोग पूर्ण आस्था से नमन करते हैं जिनमें बगीचा वाले हनुमान जी, किलेश्वर महादेव, चिंताहरण हनुमान, आसोमाता, गुप्तेश्वर महादेव, झबरा वाली माता, खेड़ापति हनुमान, काली माता मंदिर, महुअर तट पर विराजमान प्रथम पूज्य गणेश जी का मंदिर ,शम्भूदयाल नगर में चित्रगुप्त धाम साथ इतिहास में विशेष स्थान रखने वाला बिहारी जी का मंदिर है जो कि नगर के घरियाली मोहल्लेे में स्थित है। मंदिर के पुजारी श्री अरूण भार्गव ने बताते हैं कि बिहारी जी के मंदिर में बिहारी जी स्वयं वास करते हैं तथा अपने भक्तों पर दया करते हैं ऐसी चर्चायें प्राचीन काल से ही होती रहीं हैं।
बिहारी जी के मंदिर से जुड़ी जिस सत्य घटना का उल्लेख सबसे पहले अयोध्या से प्रकाशित एक पुस्तक में विनीत जी ने किया था , विनीत जी का करैरा आना हुआ तो वह बिहारी जी के मंदिर पर ही रुके थे उन्होंने रानी बाई के घर के बारे में पूंछा तो रानी बाई की भक्ति की घटना की उन्हें जानकारी मिली थी तब उन्होंने अपनी लेखनी से पूरी घटना को बडे़ रोचक ढंग से लिखा और फिर इसी कथा को विश्व विख्यात कथा वाचक राजेश्वरानंद महाराज ने अपनी कथाओं के दौरान कई बार सुनाया है।
अभी अभी कुछ दिन पूर्व वागेश्वर सरकार के प्रसिद्ध कथा वाचक श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी ने भी बडे़ रोचक ढंग से बिहारी जी के मंदिर की कथा सुनाकर हमारे करैरा नगर को गौरवान्वित किया है.
मंदिर के पुजारी जी बताते हैं कि लगभग सौ सवा सौ साल पहले बिहारी जी के मंदिर के पास एक सेठानी रहा करती थीं, जिनकी कोई संतान नहीं थी और न हीं उनका कोई कुटुम्ब परिवार था, पति के देहान्त के बाद हाट बाजार में जलेबी – पकौड़ी बनाकर बेचना ही उनकी जीविका का प्रमुख साधन था।
निजी मकान था सेठानी जी का तथा दुकान दारी से जो पैसे बचते रहे उन्हें इकट्ठा करती रहीं। सेठानी का नाम रानीवाई था, वह गहोई समाज से थी।
एक दिन अचानक उनकी तबियत बिगड़ गई रात्रि में सपना देखा कि उनकी मौत हो गई है और लोग उनके घर का सामान लूट रहे हैं नींद खुली तो रात भर उनके मन में यही उथल – पुथल मची रही कि सचमुच सपने की तरह एक दिन सब कुछ लुट ही जायेगा….मौत तो सुनिश्चित है आनी ही है एक दिन।
सेठानी जी के मन में आया कि पास में ही बिहारी जी का मंदिर है क्यों न सब कुछ बिहारी को सौंप दिया जाये.
सुबह अपने मन की बात मंदिर के पुजारी जी के सामने रखी, तो उन्होंने बस्ती के गणमान्य लोगों के समक्ष दान की कार्यवाही करा दी साथ ही पंचों ने दोनो वक्त के भोजन की व्यवस्था मंदिर के भण्डारे से सेठानी के जीवन यापन के लिये कर दी।
दान पत्र आठ आना के ग्वालियर स्टेट के स्टाम्प पर 24 सितम्बर 1900 ई. को सम्पन्न कराया गया था।
उस दौरान मंदिर की देख – रेख एवं पूजा अर्चना महंत रज्जवदास के पास थी उन्होंने भी उक्त शर्त को सहर्ष स्वीकार कर लिया।
महंत जी रोजाना सेठानी के भोजन की व्यवस्था करते और रोजाना रात को एक गिलास दूध पीने के लिये दिया करते थे, एक दिन महंत जी ने देखा कि सेठानी दूध पीते समय कुछ चबा रहीं हैं उन्होंने पूछ ही लिया, मैंने तुम्हें गिलास में सिर्फ दूध दिया है तुम चबा – चबा कर क्या खा रही हो ?
सेठानी ने कहा कि महाराज – आपने दूध में कुछ ज्यादा ही मेवा डाल दी है, जिसके कारण चबाना पड़ रहा है.
महंत जी तुरंत अंदर से दीपक लेकर आये तो देखकर दंग रह गये गिलास में काजू किसमिस अत्यधिक मात्रा में पड़े हुए थे, उन्हें लगा कि सेठानी ने सम्भवतः भण्डार में से निकाल लिये होंगे तो उन्होंने भण्डार ग्रह में ताला डाल दिया।
अगले दिन महंत जी ने बढ़िया उड़द की दाल बनवाई और मोटे – मोटे टिक्कड़ कड़क सिके हुए परोसे गये तो फिर महंत जी सेठानी की थाली देखकर आश्चर्य चकित हो गये, उन्होंने पूछा तुम्हारी थाली में परोसी गई दाल में इतना घी …. मैंने तो घी परोसा ही नहीं है।
सेठानी ने कहा – महाराज आप ही तो परोस रहे हैं, और मैं खा रही हूं। मुझे क्या पता। महंत जी विस्मय भाव से मंदिर के अंदर बिहारी जी के सामने खडे़ होकर कहते हैं कि हे प्रभु इस सेठानी की माया समझ में नहीं आती है वह कुछ नाराज से भी हो गये थे तभी उन्होंने देखा कि बिहारी जी के हाथों में घी लगा हुआ है, उन्होंने सोचा कि हो सकता है कि आरती के समय टपक गया होगा वे भली – भांति सफाई करके अपने अन्य कामों में लग गये।
अगले दिन फिर महंत जी ने उड़द की दाल बनवाई उन्होंने घी को हाथ भी नहीं लगाया किन्तु जब दाल सेठानी की थाली में पहुंची तो फिर दाल में खूब घी तैरता दिखा उन्होंने सेठानी से कुछ नहीं कहा पलट कर मंदिर में गये तो देखा बिहारी जी के हाथ से घी टपक रहा था।
अब महंत जी को सेठानी से जलन स्वाभाविक थी उन्हें लगा कि वह बिहारी जी की दिन रात पूजा कर रहे हैं और बिहारी जी मुझ पर तो प्रसन्न नहीं हुए और यह सेठानी …. इसको अपने हाथ से परोस रहे हैं।
महंत ने सेठानी को मंदिर से हठाने की योजना बनाई और उसे बदनाम करने के लिये तरह – तरह की चर्चायें करने लगे। बस्ती के लोग जिसे भक्तिन के नाम से पुकारते थे वे भी तरह – तरह की चर्चा करने लगे, वह जहां भी जाती लोग उसका मजाक उड़ाने लगते। गली में एक ही चर्चा देखो तो इतने बुढ़ापे में क्या कर दिया। जब सेठानी को लगा कि मुझे कोई बदनाम करने का प्रयास कर रहा है तो उसने एक महिला से पूछ ही लिया – बहन तुम बताओ लोग मुझे देखकर मजाक क्यों उड़ाने लगे हैं ?
महिला ने बताया कि मंदिर के महंत ने लोगों को बताया है कि तुमने किसी को रख लिया है, इतना सुनते ही वह क्रोध से आग बवूला हो गई कहने लगी मैंने अपना सब कुछ तो बिहारी जी को अर्पण कर दिया मैं कुछ भी वापिस नहीं चाहती फिर महंत जी ऐसा कलंक क्यों लगा रहे हैं।
तुरंत सेठानी ने बस्ती के बुजुर्गों से कहा कि मुझे इस बदनामी से बचायें तथा मुझे निर्दोष करके मंदिर से निकाल दें मैं तो भीख मांगकर पेट भर लूंगी।
शाम को मंदिर पर पंचों की भीड़ देखकर महंत जी घबरा गये, सभी कह रहे थे कि यदि बात सचमुच झूठ है तो महंत इस मंदिर पर नहीं रहेंगे।
महंत जी से पूंछा बताइये आपने सेठानी को बदनाम किया है ? महंत जी बोले – भण्डार का सब सामान खाली हो गया है। पंचों ने कहा – हम जो बात कह रहे हैं उसका जबाव दो महंत जी ने कहा – हां हां उसने बिहारी जू को रख लिया है। इसे बिहारी जी अपने हाथों से मेवा खिलाते हैं इनको भोजन परोसने आते हैं इनकी दाल में घी डाल जाते हैं मैंने तो प्रत्यक्ष देखा है, मैंने कह दिया तो इसमें झूंठ क्या है। सभी लोग आश्चर्य से सुन रहे थे अब क्या था सभी लोग भक्तिन सेठानी से कहने लगे हम सबको माफ कर देना सभी लोग लालायित थे कि सेठानी हमारा निमंत्रण स्वीकार कर ले।
किन्तु सेठानी ने कहा कि मैंने तो अब बिहारी जी के हाथों से परोसा हुआ भोजन किया है मुझे अब कौन सा खाना अच्छा लगेगा।
हे… बिहारी जी … अब मैं किसी के दरवाजे नहीं जाना चाहती मैंने तो तेरे ऊपर ही पूर्ण विश्वास किया है और तूने भी मेरे विश्वास को रखा है मैं अब और कहीं नहीं जाना चाहती – ‘‘ हे बिहारी जी मुझे अपने चरणों में शरण दे दो ’’
सेठानी जमीन पर लेटी तो जमीन पर सेठानी नहीं थी उनकी मृत देह पड़ी थी वे तो वहीं पहुंच गई थी जहां की चाह थी उनके मन में।
उक्त मंदिर की पूजा अर्चना का कार्य श्री अरुण कुमार भार्गव देख रहे हैं विशेष बात यह है कि मंदिर में आज भी बिहारी जी को विश्राम हेतु नियमित बिस्तर लगाया जाता है, बिस्तर के तकिया और पूरे बिस्तर बिहारी जी के विश्राम की गवाही देते हैं.
करैरा में आयें तो इस स्थान पर आकर अवश्य ही शीश झुकायें देखना सारी दुःख दुविधायें दूर हो जायेंगी।
* सतीश श्रीवास्तव
मुंशी प्रेमचंद कालोनी करैरा